जम्बूद्वीप के अकृत्रिम चैत्यालय सुमेरु के १६, सुमेरु पर्वत की विदिशा में चार गजदन्त के ४, हिमवान् आदि षट् कुलाचलों के ६, विदेह क्षेत्र में सोलह वक्षार पर्वतों के १६, विदेह क्षेत्र के बत्तीस विजयार्ध के ३२, भरत, ऐरावत के विजयार्ध के २, देवकुरु और उत्तरकुरु में स्थित जम्बूवृक्ष, शाल्मलीवृक्ष की शाखाओं के २, इस…
तीर्थंकर प्रकृति का आस्रव १. दर्शनविशुद्धि-पच्चीस दोष रहित निर्मल सम्यग्दर्शन। २. विनय सम्पन्नता-रत्नत्रय तथा उनके धारकों की विनय। ३. शीलव्रतेष्वनतिचार-अहिंसादि व्रत और उनके रक्षक क्रोधत्याग आदि शीलों में विशेष प्रवृत्ति। ४. अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग-निरन्तर ज्ञानमय उपयोग रखना। ५. संवेग-संसार से भयभीत रहना। ६. शक्तितस्त्याग-यथा शक्ति दान देना। ७. शक्तितस्तप-उपवासादि तप करना। ८. साधु समाधि-साधुओं का उपसर्ग…
मध्यलोक के अकृत्रिम जिनालय जम्बूद्वीप के समान ही धातकी खण्ड एवं पुष्करार्ध में २-२ मेरु के निमित्त से सारी रचना दूनी-दूनी होने से चैत्यालय भी दूने-दूने हैं तथा धातकी खण्ड एवं पुष्करार्ध में २-२ इष्वाकार पर्वत पर २-२ चैत्यालय हैं। मानुषोत्तर पर्वत पर चारों दिशाओं के ४, नन्दीश्वर द्वीप की चारों दिशाओं में १३-१३ चैत्यालय…
मध्यलोक मध्यलोक १ राजु चौड़ा १ लाख ४० योजन ऊँचा है। यह चूड़ी के आकार का है। इस मध्यलोक में असंख्यात द्वीप और असंख्यात समुद्र हैं। इस मध्यलोक के बीचों-बीच में एक लाख योजन व्यास वाला अर्थात् ४० करोड़ मील विस्तार वाला जम्बूद्वीप स्थित है। जम्बूद्वीप को घेरे हुए २ लाख योजन विस्तार वाला लवण…
[[श्रेणी:छह_द्रव्यों_का_वर्णन]] == संज्ञा == संज्ञा नाम वाञ्छा का है जिसके निमित्त से दोनों ही भवों में दारुण दु:ख की प्राप्ति होती है उस वाञ्छा को संज्ञा कहते हैं। संज्ञाएं चार हैं-आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा और परिग्रह संज्ञा। ये प्रत्येक प्राणियों में पायी जाती हैं।
केवलज्ञान की उत्पत्ति केवलज्ञान की उत्पत्ति-असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत इन चार गुणस्थानों में से किसी एक गुणस्थान में मोहनीय की सात प्रकृतियों का क्षय करके क्षायिक सम्यग्दृष्टि क्षपक श्रेणी पर आरोहण करने के सन्मुख होता हुआ अप्रमत्तसंयत (सप्तम) गुणस्थान में अध:प्रवृत्तकरण को प्राप्त होकर अपूर्वकरण गुणस्थान में नूतन परिणामों की विशुद्धि से पाप प्रकृतियों…