जिनधर्म!
जिनधर्म- जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहा गया धर्म जिनधर्म है” पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी ने नवदेवता पूजा की जयमाला में लिखा है – जिनधर्म चक्र सर्वदा चलता ही रहेगा” जो इसकी शरण ले वो सुलझता ही रहेगा”
जिनधर्म- जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहा गया धर्म जिनधर्म है” पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी ने नवदेवता पूजा की जयमाला में लिखा है – जिनधर्म चक्र सर्वदा चलता ही रहेगा” जो इसकी शरण ले वो सुलझता ही रहेगा”
कैसे बनें लाड़ली बहू काजल, टीकी, बोर, नथ, महन बरी से बेस, बाई बनगी बीनणी, चली वीराने देस। हाथों मेहंदी राचणी , सिंदूर शोभे शीश, दूधा न्हां पूतां फलों , मायड़ दी आशीष। अग्नि का साक्ष्य, रिवाजों की डगर, सुहाग के गीत, शहनाई की गूंज के साथ दो परिवारों को जोड़ने की भावना, अपने आपको…
बंधन किसको शेख फरीद एक गांव से गुजरता था। दो चार शिष्य उसके साथ थे। अचानक बीच बजार में फरीद रूक गया और उसने कहा कि— देखो ! एक बड़ा सवाल उठाया है । बड़ा तत्व का सवाल है और सोच के जवाब देना। एक आदमी गाय को रस्सी से बांधकर ले जा रहा था।…
शुभकामना संदेश परमपूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी द्वारा ब्र. रवीन्द्र जी को जम्बूद्वीप संस्थान के कुशल संचालन के लिए पीठाधीश पद पर आसीन किया। इस गरिमापूर्वक पद पर पीठासीन होने पर समस्त जैन समाज बहुत ही हर्षित है। कृपया राजस्थान जैन सभा की कार्यकारिणी तथा मेरी ओर से स्वामी जी प्रणाम स्वीकार करें। शुभकामना संदेश…
(चौबीसी नं. २८) पश्चिम पुष्करार्धद्वीप ऐरावतक्षेत्र भूतकालीन तीर्थंकर स्तोत्र गीता छंद दिश अपर पुष्कर द्वीप में, शुभ क्षेत्र ऐरावत कहा। उस मध्य आरज खंड में, तीर्थेशगण होते वहाँ।। जो हुए बीते काल में, उन जिनवरों को मैं नमूँ। बहु भक्ति श्रद्धा से यहाँ, मन-वचन-तन से नित नमूँ।।१।। दोहा श्री ‘उपशांत’ जिनेन्द्र हैं, प्रशम गुणाकर आप।…
(चौबीसी नं. ३०) पश्चिम पुष्करार्ध ऐरावतक्षेत्र भविष्यत्कालीन तीर्थंकर स्तोत्र गीता छंद पश्चिम सुपुष्कर द्वीप के, उत्तर दिशा में जानिये। शुभ क्षेत्र ऐरावत वहाँ पर, कर्म भूमी मानिये।। होंगे वहाँ तीर्थेश भावी, आज उनकी वंदना। मैं करूँ श्रद्धा भक्ति धरके, मोह की कर वंचना।।१।। दोहा कोटि सूर्य शशि से अधिक, तुम प्रभु जोतिर्मान। शीश नमाकर मैं…
(चौबीसी नं. २७) पश्चिम पुष्करार्धद्वीप भरतक्षेत्र भविष्यत्कालीन तीर्थंकर स्तोत्र अडिल्ल छंद पश्चिम पुष्कर भरतक्षेत्र मनमोहना। भाविकाल के तीर्थंकर से सोहना।। उन चौबीसों जिनवर का वंदन करूँ। आशा सरवर तुम वच से सूखा करूँ।।१।। दोहा नाथ! आप शिवपथ विघन, करते चकनाचूर। इसी हेतु मैं नित नमूँ, मिले आत्मरस पूर।।२।। नरेन्द्र छंद मन से संचित पाप उदयगत,…
(चौबीसी नं. २६) पश्चिम पुष्करार्धद्वीप भरतक्षेत्र वर्तमान तीर्थंकर स्तोत्र गीता छंद पुष्कर अपर के भरत में, संप्रति जिनेश्वर जो हुए। समरस सुधास्वादी मुनी, उनके चरण में नत हुए।। उन वीतरागी सौम्य मुद्रा, देख जन-मन मोदते। उनकी करूँ मैं वंदना, वे सकल कल्मष धोवते।।१।। दोहा अलंकार भूषण रहित, फिर भी सुन्दर आप। आयुध शस्त्र विहीन हो,…
(चौबीसी नं. २३) पूर्व पुष्करार्धद्वीप ऐरावत क्षेत्र वर्तमान तीर्थंकर स्तोत्र नरेन्द्र छंद पूरब पुष्कर ऐरावत के, वर्तमान तीर्थंकर। चिच्चैतन्य सुधारस प्यासे, भविजन को क्षेमंकर।। उनको नितप्रति शीश नमाके, प्रणमूँ मन-वच-तन से। आतम अनुभव अमृत हेतु, वंदूँ अंजलि करके।।१।। दोहा निज में ही रमते सदा, सिद्धिवधू भरतार। इसी हेतु भविजन नमें, भुक्ति मुक्ति करतार।।२।। दोहा श्री…