07. पूर्व धातकीखण्डद्वीप भरतक्षेत्र भूतकालीन तीर्थंकर स्तोत्र
(चौबीसी नं. ७) पूर्व धातकीखण्डद्वीप भरतक्षेत्र भूतकालीन तीर्थंकर स्तोत्र गीता छंद श्री विजयमेरू दक्षिणी दिश, भरतक्षेत्र सुहावना। चौबीस तीर्थंकर अतीते, काल के गुण गावना।। सुर असुर मुकुटों को झुकाकर, वंदते हैं भाव से। मैं भी करूँ नित वंदना, अति भक्ति श्रद्धा चाव से।।१।। दोहा रागद्वेष मद मोह को, जीत हुये ‘जिन’ ख्यात। पृथव् पृथव् तुम…