दिगम्बर मुनि!
दिगम्बर मुनिदिशाएँ ही जिनका अम्बर होती हैं , ऐसे वस्त्रमात्र परिग्रह के त्यागी जैन मुनि दिगम्बर मुनि कहलाते हैं ।वर्तमान में दिगम्बर जैन समाज में ऐसे लगभग ६०० मुनि पूरे देश में विहार करते हुए त्याग एवं संयम का उपदेश दे रहे हैं ।
दिगम्बर मुनिदिशाएँ ही जिनका अम्बर होती हैं , ऐसे वस्त्रमात्र परिग्रह के त्यागी जैन मुनि दिगम्बर मुनि कहलाते हैं ।वर्तमान में दिगम्बर जैन समाज में ऐसे लगभग ६०० मुनि पूरे देश में विहार करते हुए त्याग एवं संयम का उपदेश दे रहे हैं ।
निर्वाणपद –आठों कर्मों का नाश करके जो अविनश्वर पद की प्राप्ति होती है , उसे निर्वाणपद कहते हैं ।इस पद के बाद संसार में पुनः जन्म नहीं लेना पड़ता है ।
श्रुतकेवली – ग्यारह अंग एवं चौदह पूर्वरूप श्रुत के ज्ञाता मुनिराज श्रुतकेवली कहलाते हैं ।
महान औषधि क्या है? जिणवयणमोसहमिणं विसहसुहविरेयणं अमिदभूदं।जरमरणवाहिहरणं रवयकरणं सव्वदुक्खाणं।। अर्थ –जिनेन्द्रदेव के वचन महान औषधि हैं, ये विषयसुखों का विरेचन कराने वाले हैं, अमृतरूप हैं, जरा और मरणरूप महाव्याधि को दूर करने वाले हैं तथा संपूर्ण दु:खों का क्षय करने वाले हैं।
कितना पानी पिएं ? अब तक यही माना जाता रहा है कि जितना अधिक पानी पिएं, स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है किन्तु यदि आपको ८ गिलास पानी पीकर बार बार लघुशंका जाना पड़ता है तो जरा रुकिये। शोधकर्ता हैन्स वॉलटिन के अनुसार इतना पानी पीना आवश्यक नहीं है। हमारे शरीर में जल संचार हेतु…
शुभ ध्यान की महिमा स्तोकममीहं न चाद्भुतमस्ति न्यस्य समस्त परिग्रहसंगम्।यत्क्षणतो दुरितस्य विनाशं ध्यानबलाज्जनयंति बृहन्त:।। इसमें किंचित् मात्र भी आश्चर्य नहीं है कि बड़े पुरुष समस्त परिग्रह का त्याग करके ध्यान के बल से क्षण मात्र में समस्त पापों का नाश कर देते हैं। अर्जितमत्युरुकालविधानादिन्धनराशिमुदारमशेषम्।प्राप्य परं क्षणतो महिमानं किं न दहत्यनिल: कणमात्र:।। क्या बहुत काल से…
लक्ष्य कौन प्राप्त कर सकता है? जह ण वि लहदि हु लक्खं रहिओ वंडस्स वेज्जयविहीणो।तह ण वि लक्खदि लक्खं अण्णाणी मोक्खमग्गस्स।। जिस प्रकार निशाना लगाने के अभ्यास से रहित पुरुष लक्ष्य का वेध नहीं कर सकता है, उसी प्रकार श्रुतज्ञान से रहित अज्ञानी पुरुष मोक्षमार्ग में लक्ष्यभूत अपनी आत्मा के स्वरूप को नहीं प्राप्त कर…
तीर्थंकर भगवान दान पूजा का उपदेश देते हैं तित्थयरस्स विहारो लोअसुहो णेव तत्थ पुण्यफलो।वयणं च दाणपूजारंमयरं तं ण लेवेइ।।५४।। तीर्थंकर का विहार संसार के लिए सुखकर है परन्तु उससे तीर्थंकर को पुण्यरूप फल प्राप्त होता है ऐसा नहीं है तथा दान और पूजा आदि आरंभ के करने वाले वचन उन्हें कर्मबंध से लिप्त नहीं करते…
देव का लक्षण सो देवो जो अत्थं धम्मं कामं सुदेइ णाणं च।सो देइ जस्स अत्थि दु अत्थो धम्मो य पव्वज्जा।। ‘जो देवे सो देव’ इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो अर्थ-निधि, रत्न आदि धन को देता है, धर्म-चारित्र लक्षण धर्म को, दया लक्षण धर्म को, वस्तु स्वरूप लक्षण धर्म को, आत्मा की उपलब्धि लक्षण धर्म को…