तीर्थंकर भगवान दान पूजा का उपदेश देते हैं!
तीर्थंकर भगवान दान पूजा का उपदेश देते हैं तित्थयरस्स विहारो लोअसुहो णेव तत्थ पुण्यफलो।वयणं च दाणपूजारंमयरं तं ण लेवेइ।।५४।। तीर्थंकर का विहार संसार के लिए सुखकर है परन्तु उससे तीर्थंकर को पुण्यरूप फल प्राप्त होता है ऐसा नहीं है तथा दान और पूजा आदि आरंभ के करने वाले वचन उन्हें कर्मबंध से लिप्त नहीं करते…