प्रशस्ति
प्रशस्ति कुन्दकुन्द के ग्रन्थ नव, चिंतन कर चिरकाल। ‘ज्ञानमती’ गुम्फित करी, कुन्दकुन्द मणिमाल।।१।। पच्चीस सौ सत्याशिवां, चैत्र त्रयोदशि शुद्ध। वीर जनम दिन पूर्ण कीr, यह मणिमाल विशुद्ध।।२।। भविजन पहनो कण्ठ में, इसका अतिशय तेज। पूर्ण ‘ज्ञानमति’ रवि उगे, खिलें स्वगुण पंकेज।।३।। अर्थ—श्रीकुन्दकुन्ददेव के नौ ग्रन्थों का बहुत दिनों तक चिंतन करके ‘‘आर्यिका ज्ञानमती’’ मैंने यह…