04. 108 अर्घ्य
अथ 108 अर्घ्य सोरठा समवसरण प्रभु आप, त्रिभुवन की लक्ष्मी धरे। पूजूँ तुम चरणाब्ज, पुष्पांजलि अर्पण करूँ।।१।। ।।इति मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।। चाल-पूजों पूजों श्री………. ‘वृहद्वृहस्पति’ प्रभु नाम है। सुरपति के गुरू सरनाम हैं। पूजते ही मिले मोक्ष धाम है। श्रीधर्मनाथ अर्चन करूँ मैं नित ही।। आवो पूजें जिनेश्वर नामा। जिससे पावें निजातम धामा। सर्व कर्मों…