तृतीय अध्याय का भजन
तृतीय अध्याय का भजन हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते। तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।टेक.।। आचार्य उमास्वामी तृतीय, अध्याय में ऐसा कहते हैं। पापों के करण जीव नरक, आदिक दु:खों को सहते हैं।। हैं मध्यलोक में मनुज और, तिर्यंच जीव यह बतलाते। तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु,…