04. बड़ी जयमाला
बड़ी जयमाला -सोरठा- जो पीते धर प्रीति, तुम पद भक्ति पियूष को। पुनर्जन्म को नाश, अजर अमर पद को लहें।।१।। -चाल शेर- जैवंत तीर्थवंत मुक्तिकान्त जिनेश्वर। जैवंत मूर्तिमंत धर्मकांत जिनेश्वर।। जैवंत लोक अंत के पर्यन्त विराजें। जैवंत हृदय ध्वांत हरण चन्द्र विभासें।।२।। हे नाथ ! आज आपसे मैं प्रार्थना करूं। मुझ जन्म मरण नाशिये यह…