पाँच प्रकार के मुनि पुलाक, वकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक ये पाँच भेद निग्र्रन्थ मुनियों के होते हैं। पुलाक – जो उत्तरगुणों की भावना से रहित हैं, कहीं पर और कदाचित् व्रतों में परिपूर्णता को प्राप्त नहीं होते हैं, वे पुलाक मुनि कहलाते हैं। ये मुनि भावसंयमी ही हैं, द्रव्यलिंगी नहीं हैं। वकुश – जो निग्र्रंथ…
पुण्य- जीवन में सत्कर्मों के करने से जो कर्म बँधता है उसे पुण्य कहते हैं । पुण्य से ही संसार में सारे कार्य बनते हैं तथा पुण्य से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है । इसलिए सदैव पुण्य के उपार्जन में आगे रहना चाहिए ।
इंसान – मनुष्य को इंसान कहा जाता है । दुनिया में इंसानियत ही मनुष्यता की पहचान मानी जाती है ।
श्रमण संस्कृति के उन्नायक चा. च. आचार्य श्री शान्तिसागरजी महाराज शाश्वत श्रमण संस्कृति ने अपने प्रवाह में अनेक उतार—चढ़ाव का अनुभव किया। भगवान महावीर के मोक्ष गमन के बाद अनेक जैनाचार्यों, श्रमणों ने इसे आगे बढ़ाया। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में तात्कालिक परिस्थितियों एवं धार्मिक सत्तावरोध के कारण दिगम्बर जैन श्रमणों की संख्या में अत्यन्त…
ऋद्धि मंत्र ॐ ह्रीं अर्हं णमो जिणाणं झ्रौं झ्रौं नम: स्वाहा ।।१।। ॐ ह्रीं अर्हं णमो ओहिजिणाणं झ्रौं झ्रौं नम: स्वाहा ।।२।। ॐ ह्रीं अर्हं णमो परमोहिजिणाणं झ्रौं झ्रौं नम: स्वाहा ।।३।। ॐ ह्रीं अर्हं णमो सव्वोहिजिणाणं झ्रौं झ्रौं नम: स्वाहा ।।४।। ॐ ह्रीं अर्हं णमो अणंतोहिजिणाणं झ्रौं झ्रौं नम: स्वाहा ।।५।। ॐ ह्रीं…