परमार्थविंशति:
परमार्थविंशति: -शार्दूलविक्रीडित- मोहद्वेषरतिश्रिता विकृतयो दुष्टा: श्रुता: सेविता: बारम्बारमनंतकालविचरत्सर्वांगिभि: ससृतौ। अद्वैतं पुनरात्मनो भगवतो १दुर्लक्ष्यमेकं परं बीजं मोक्षतरोरिदं विजयते भव्यात्मभिर्वंदितम्।।१।। अर्थ —संसार में अनंतकाल से भ्रमण करते हुये प्राणियों ने मोह-द्वेष-राग के आश्रित जो विकार हैं, उनको देखा है, सुना है तथा उनको अनुभव भी किया है fिकन्तु भगवान आत्मा के अद्वैत को न देखा है और…