ऋषभस्तोत्र
ऋषभस्तोत्र -गाथा- जय उसह णाहिणंदण तिहुवणणिलयेकदीव तित्थयर। जय सयलजीववच्छल णिम्मलगुणरयणणिहि णाह।।१।। जय ऋषभ नाभिनंदन त्रिभुवन निलयैकदीप तीर्थंकर। जय सकलजीववत्सल निर्मलगुणरत्ननिधे नाथ। अर्थ —श्रीमान नाभिराजा के पुत्र तथा ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोकरूपी जो घर उसके लिये दीपक, तथा धर्मतीर्थ की प्रवृत्ति करने वाले , हे ऋषभदेव भगवान् ! तुम सदा इस लोक में जयवंत रहो तथा…