अनित्यत्वाधिकार
अनित्यत्वाधिकार अब आचार्य अनित्य पञ्चाशतनामक अधिकार का वर्णन करते हुए प्रथम मंगलाचरण करते हैं। -आर्या छंद- जयति जिनो धृतिधनुषामिषुमाला भवति योगियोधानाम्। यद्वाकरुणामय्यपि मोहरिपुप्रहतये तीक्ष्णा।।१।। अर्थ—दयामयी भी जिस जिनेन्द्र की वाणी धैर्यरूपी धनुष को धारण करने वाले योगीरूपी योधाओं के मोहरूपी बैरी के नाश करने के लिये पैनी बाणों की पंक्ति के समान है वह जिनेन्द्र…