श्री नमिनाथ तीर्थंकर विधान
श्री नमिनाथ तीर्थंकर विधान 01. श्री अर्हंत पूजा 02. श्री नमिनाथ तीर्थंकर पूजा
श्री नमिनाथ तीर्थंकर विधान 01. श्री अर्हंत पूजा 02. श्री नमिनाथ तीर्थंकर पूजा
पूजा नं. 2 श्री नमिनाथ तीर्थंकर पूजा -अथ स्थापना-गीता छंद- नमिनाथ के गुणगान से, भविजन भवोदधि से तिरें। मुनिगण तपोनिधि भी हृदय में, आपकी भक्ती धरें।। हम भी करें आह्वान प्रभु का, भक्ति श्रद्धा से यहाँ। सम्यक्त्व निधि मिल जाय स्वामिन्! एक ही वांछा यहाँ।।१।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथतीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं…
पूजा नं. 1 श्री अर्हंत पूजा स्थापना—गीता छंद अरिहंत प्रभु ने घातिया को घात निज सुख पा लिया। छ्यालीस गुण के नाथ अठरह दोष का सब क्षय किया।। शत इंद्र नित पूजें उन्हें गणधर मुनी वंदन करें। हम भी प्रभो! तुम अर्चना के हेतु अभिनन्दन करें।।१।। ॐ ह्रीं अर्हन् नम: हे अर्हत्परमेष्ठिन्! अत्र अवतर अवतर…
01. अथ यागमंडलवर्तन विधान 02. यागमण्डल पूजा 03. अथ अष्टदलस्थापितजयादिदेवतार्चना 04. जलहोम-विधानम्
जलहोम-विधानम् जलहोम कुंड भी तीर्थंकर कुंड के समान चौकोन बनावें, या बालू से चौकोन 2 ² 2 या 1 (1/2) 2 1/2 फुट का चबूतरा बनाकर उसमें चारों तरफ तीन कटनी बनावें, उसके पश्चिम में दो कुंभ स्थापित करें। तत्रादौ तावत्संकल्पपूर्वकपुण्याहवाचनं कुर्यात्। (शांतिहोम से पुण्याहवाचन से लेकर ‘‘मौनव्रतं गृण्हामि’’ पर्यंत क्रम विधि करके पुन: आगे…
अथ अष्टदलस्थापितजयादिदेवतार्चना (अब अष्टदल कमल में स्थापित जया आदि आठ देवियों की क्रम से पूजा करना है। इन जयादि देवियों की पूजा के लिए एक थाल में पूजन सामग्री लेकर जिनेन्द्रदेव के चरण कमलों में अवतरणविधि करके अपने पास में रख लेवें। इसी सामग्री से देवियों की पूजा करें।) पुष्पांजलि:-नरेन्द्र छंद त्रिभुवन विजयी कामदेव को…
यागमण्डल पूजा (समुच्चय पूजा) -शंभु छंद- अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय, साधु पंचपरमेष्ठी हैं। त्रयकालिक चौबिस तीर्थंकर, शत इन्द्रों से नित वंदित हैं।। चउ मंगल लोकोत्तमशरणं, जिनधर्म जिनागम जिनप्रतिमा। जिन चैत्यालय इन सोलह को, मैं पूजूँ इनकी अति महिमा।।१।। ॐ ह्रीं श्री पंचपरमगुरुत्रैकालिकतीर्थंकर-चतुर्मंगललोकोत्तमशरण-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-चैत्यालय समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्री पंचपरमगुरुत्रैकालिकतीर्थंकर-चतुर्मंगललोकोत्तमशरण-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-चैत्यालय समूह! अत्र तिष्ठ…
अथ यागमंडलवर्तन विधान वेद्यां मण्डलमालिखार्चितासितैश्चूर्णै: सिताकल्पभृन्- नागाधीश धनेशपीतवसनालंकारपीतैश्च तै:। नीलैर्नीलभ नीलवेषसुमनो रक्ताभ रत्तैस्ततो, रक्ताकल्पक कृष्णवेशविलसत्कृष्णैश्च कृष्णप्रभ।।१।। -शंभु छंद- वेदी में यागमण्डल रचिये, हे नागाधिप! सित चूर्णों से। धनपति पीतांबर पीतचूर्ण, नीलभसुर नीले वर्णों से।। हे रक्ताकल्पक लालचूर्ण, कृष्णाप्रभ काले चूर्णों से। ये रत्नचूर्ण पाँचों रंग के, इनसे मंडल रचिये विधि से।।१।। ॐ ह्रीं श्वेतपीतहरितारुणकृष्णमणिचूर्णं स्थापयामि…