भक्ति
भक्ति 01. भक्ति 02. महामुनि सुकुमाल 03. रक्षा बंधन 04. अञ्जन से निरञ्जन
अञ्जन से निरञ्जन (1) जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के आर्यखंड में काश्मीर नाम का प्रसिद्ध देश है। किसी समय इसमें विजयपुर नाम का एक नगर था। वहाँ पर जिनमंदिरोें पर ध्वजाएँ फहराती हुई मानों भव्य जीवों को…
रक्षा बंधन (1) दिगम्बर गुरु श्री अकंपन आचार्य महाराज शहर और ग्रामों में विहार करते हुए उज्जयिनी नगरी के उद्यान में जाकर ठहर जाते हैं। उनके साथ सात सौ मुनियों का विशाल संघ है। इतने बड़े संघ के अधिनायक…
महामुनि सुकुमाल (1) उज्जयिनी नगरी के बाहरी पवित्र उद्यान में नग्न दिगम्बर मुद्रा के धारी अवधिज्ञानी महामुनि विराजमान हैं। सेठानी यशोभद्रा बहुत ही विनय से हाथ जोड़कर पूछती है— ‘‘हे…
भक्ति (1) शीलधुरंधर सेठ सुदर्शन मुनिराज उस निर्जन वन में एक शिला पर योगमुद्रा में स्थित हैं। आगम के प्रकाश में अंत:चक्षु के द्वारा वे अपनी आत्मा को देखने का प्रयत्न कर रहे हैं। ऐसी भयंकर शीत ऋतु में वे नग्न दिगम्बर मुनि धैर्यरूपी कंबल…
पंचमेरु विधान 01. पंचमेरु विधान 01.1 पंचमेरु पूजा 01.2 सुदर्शन मेरु पूजा 01.3 विजय मेरु पूजा 01.4 अचल मेरु पूजा 01.5 मंदर मेरु पूजा 01.6 वि़द्युन्माली मेरु पूजा 02. महार्घ्य जयमाला ***
महार्घ्य जयमाला -दोहा- चिन्मय चििंच्चतामणी, चिदानंद चिद्रूप। अमल निकल परमात्मा, परमानंद स्वरूप।।१।। नमूँ नमूँ जिन सिद्ध औ, स्वयंसिद्ध जिनबिंब। पंचमेरु वंदन करूँ, हरूँ जगत दुख नद्य।।२।। -चाल—हे दीनबन्धु- जैवंत पंचमेरु ये सौ इन्द्र वंद्य हैं। जैवंत ये मुनीन्द्र वृंद से भि वंद्य है।। जैवंत जैनसद्म ये अस्सी सु संख्य हैं। जैवंत मूर्तियाँ अनंत गुण धरंत…
पूजा नं.6 वि़द्युन्माली मेरु पूजा -स्थापना—गीता छंद- श्री मेरु विद्युन्मालि पंचम, द्वीप पुष्कर अपर में। तीर्थंकरों का न्हवन होता है सदा तिस उपरि में।। सोलह जिनालय हैं वहाँ, सुरवंद्य जिन प्रतिमा तहाँ। आह्वान कर पूजूँ सदा, मैं भक्ति श्रद्धा से यहाँ।।१।। ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपस्थविद्युन्मालिमेरुसंबंधिषोडशजिनालयजिन-बिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपस्थविद्युन्मालिमेरुसंबंधिषोडशजिनालयजिन—बिम्बसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ…
पूजा नं.5 मंदर मेरु पूजा -स्थापना—नरेन्द्र छंद- पुष्करार्ध वर द्वीप पूर्व में मंदर मेरु सोहे। उसके सोलह जिनमंदिर में जिनप्रतिमा मन मोहे।। भक्ति भाव से आह्वानन कर पूजा पाठ रचाऊँ। भव भव के संताप नाश कर स्वातम सुख को पाऊँ।।१।। ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपस्थमंदरमेरुसंबंधिषोडशजिनालयजिनिंबब समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपस्थमंदरमेरुसंबंधिषोडशजिनालयजिनिंबब समूह! अत्र तिष्ठ…
पूजा नं.4 अचल मेरु पूजा -स्थापना—गीता छंद- श्री अचलमेरु राजता है, अपर धातकि द्वीप में। सोलह जिनालय तास में, जिनिंबब हैं उन बीच में।। प्रत्यक्ष दर्शन हो नहीं, अतएव पूजूँ मैं यहाँ। आह्वान विधि करके प्रभो, थापूँ तुम्हें आवो यहाँ।।१।। ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपस्थअचलमेरुसम्बन्धिषोडशजिनालय—जिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपस्थअचलमेरुसम्बन्धिषोडशजिनालय—जिनबिम्बसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ:…