01. ‘‘समवसरण विंशतिका’’
‘‘समवसरण विंशतिका’’ …
श्री समवसरण विधान (मंगलाचरण) -दोहा- समवसरण में राजते, तीर्थंकर भगवंत। नमूँ अनंतो बार मैं, पाऊँ सौख्य अनंत।।१।। -शंभु छंद- कैवल्य सूर्य के उगते ही, प्रभु समवसरण गगनांगण में। पृथ्वी से बीस हजार हाथ, ऊपर पहुँचे अर्हंत बनें।। सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से, तत्क्षण ही धनपति आ करके। बस अर्धनिमिष में समवसरण, रच देता दिव की…
समवसरण विधान मंगलाचरण 01. श्री समवसरण विधान 02. मानस्तंभ पूजा 03. चैत्य प्रासाद भूमि पूजा 04. खातिका भूमि पूजा 05. लता भूमि पूजा 06. उपवन भूमि पूजा 07. ध्वज भूमि पूजा 08. कल्पवृक्ष भूमि पूजा 09. सातवीं भवन भूमि पूजा 10. आठवीं श्रीमंडप भूमि पूजा 11. प्रथम पीठ पूजा 12. द्वितीय पीठ पूजा 13….
बड़ी जयमाला -दोहा- घाति चतुष्टय घातकर, प्रभु तुम हुये कृतार्थ। नवकेवल लब्धीरमा, रमणी किया सनाथ।।१।। -शेरछंद- प्रभु दर्श मोहनीय को निर्मूल किया है। सम्यक्त्व क्षायिकनाम को परिपूर्ण किया है।। चारित्र मोहनीय का विनाश जब किया। क्षायिक चरित्र नाम यथाख्यात को लिया।।२।। संपूर्ण ज्ञानावर्ण का जब आप क्षय किया। कैवल्यज्ञान से त्रिलोक ज्ञान जब लिया।। प्रभु…
(पूजा नं.14) तीर्थंकर गुण पूजा -अथ स्थापना- -शंभु छंद- जो पंच कल्याणक के स्वामी, तीर्थंकर पद के धारी हैं। उनका ही समवसरण बनता, जिसकी शोभा अतिन्यारी है।। यद्यपि उनके गुण हैं अनंत, फिर भी छ्यालिस गुण विख्याते। उनका आह्वानन कर पूजें, वे मेरे सब गुण विकसाते।।१।। ॐ ह्रीं षट्चत्वारिंशद्गुणमंडितचतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर…
(पूजा नं.13) गंधकुटी पूजा -अथ स्थापना- -अडिल्ल छंद- समवसरण जिन खिले कमलवत् शोभता। गंधकुटी है उसमें मानों कर्णिका।। चामर किंकणी वंदन माला हार से। शोभे अतिशय गंधकुटी पूजूं उसे।।२।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितगंधकुटीसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं.12) द्वितीय पीठ पूजा -अथ स्थापना- -अडिल्ल छंद- समवसरण में पीठ दूसरा स्वर्ण का। आठ दिशा में आठ ध्वजायें वर्णिता।। नव निधि मंगल द्रव्य धूप घट शोभते। पूजूं भक्ति बढ़ाय, सर्वमन मोहते।।१।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितद्वितीयपीठोपरिअष्ट- अष्टमहाध्वजासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितद्वितीयपीठोपरिअष्ट- अष्टमहाध्वजासमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ…
(पूजा नं.11) प्रथम पीठ पूजा -अथ स्थापना-नरेन्द्र छंद- पंचम वेदी के बाद १पीठ, पहला वैडूर्य मणी का है। बारह कोठे अरु चार गली, से सोलह बनी सीढ़ियां हैं।। चूड़ी सम गोल इसी ऊपर, चारों दिश में यक्षेंद्र खड़े। वे शिर पर धर्मचक्र धारें, उन पूजत सुख सौभाग्य बढ़े।।१।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितयक्षेंद्रमस्तकोपरिविराजमान- चतुश्चतुर्धर्मचक्रसमूह! अत्र अवतर अवतर…
(पूजा नं.10) आठवीं श्रीमंडप भूमि पूजा -अथ स्थापना- -नरेन्द्र छंद- रत्नों के खंभों पर सुस्थित, मुक्तामालाओं से सुन्दर। श्री मंडपभूमि आठवीं है, द्वादशगण रचना से मनहर।। इनमें जो मुनी आर्यिका हैं, हम उनका वंदन करते हैं। इन समवसरण युत जिनवर का, आह्वानन कर हम यजते हैं।। ॐ ह्रीं श्रीमंडपभूमिमंडितसमवसरणविभूतिधारकचतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं.9) सातवीं भवन भूमि पूजा -अथ स्थापना- -नरेन्द्र छंद- भवन भूमि में भवन बने हैं, अतिशय ऊँचे-ऊँचे। इनमें देव देवियाँ किन्नर, क्रीड़ा करने पहुँचे।। चारों गलियों में नव-नव, स्तूप बने मणियों के। उनमें रत्नमयी जिनप्रतिमा, पूजूँ श्रद्धा करके।।१।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितभवनभूमिसंबंधिनवनवस्तूप- मध्यविराजमानसर्वजिनप्रतिमासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितभवनभूमिसंबंधिनवनवस्तूप- मध्यविराजमानसर्वजिनप्रतिमासमूह! अत्र तिष्ठ…