एकीभाव स्तोत्र विधान-पूजन
एकीभाव स्तोत्र विधान-पूजन 01. मंगलाचरण 02. एकीभाव स्तोत्र विधान-पूजन
एकीभाव स्तोत्र विधान-पूजन 01. मंगलाचरण 02. एकीभाव स्तोत्र विधान-पूजन
एकीभाव स्तोत्र विधान-पूजन -स्थापना (शंभु छंद)- तीर्थंकर प्रभु की भक्ति सदा ही, सच्चे सुख को देती है। वह दुर्गति का वारण करके, भव-भव के दुख हर लेती है।। श्रीवादिराज मुनि ने प्रभु भक्ति से, तन का कुष्ट मिटाया था। निज काया को कर स्वस्थ स्वर्णमय, धर्मरूप दर्शाया था।।१।। -दोहा- प्रभु भक्ती में रच दिया, एकीभाव…
मंगलाचरण अरहंत देव को नमूँ जो सौख्य प्रदाता, सिद्धों को नमूँ जो हैं भवि को सिद्धिप्रदाता। आचार्य, उपाध्याय, साधु परम पूज्य हैं, इनकी करूँ मैं वन्दना दें सर्व सौख्य है।।१।। श्री ऋषभदेव वीर जिन हैं चतुर्विंशती, प्रणमूँ मैं भक्तिभाव से उन चरण में नती। गौतम गणीश आदि गणधरों को नित नमूँ, उन क्रम परम्परा में…
सप्तपरम स्थान विधान 01. मंगलाचरण 02. सप्तपरमस्थान तीर्थंकर पूजा (समुच्चय पूजा) 03. सज्जातिपरमस्थानप्रदायक श्री ऋषभदेव जिनपूजा 04. सद्गृहस्थ परमस्थानप्रदायक श्री चन्द्रप्रभ पूजा 05. पारिव्राज्य परमस्थानप्रदायक श्री नेमिनाथ पूजा 06. सुरेन्द्रपरमस्थानप्रदायक श्री पार्श्वनाथ पूजा 07. साम्राज्यपरमपदप्रदायक श्री शीतलनाथ पूजा 08. आर्हन्त्यपरमस्थान प्रदायक श्री शांतिनाथ पूजा 09. निर्वाणपरमस्थानप्रदायक श्री महावीर पूजा 10. बड़ी जयमाला
बड़ी जयमाला -शंभु छंद- हे आदिनाथ! हे आदीश्वर! हे वृषभ जिनेश्वर! नाभिललन! पुरुदेव! युगादिपुरुष! ब्रह्मा, विधि और विधाता मुक्तिकरण।। मैं अगणित बार नमूँ तुझको, वन्दूं ध्याऊँ गुणगान करूँ। स्वात्मैक परम आनन्दमयी, सुज्ञान सुधा का पान करूँ।।१।। षट् मास योग में लीन रहे, लंबित भुज नासा दृष्टी थी। निज आत्म सुधारस पीते थे, तन से बिल्कुल…
निर्वाणपरमस्थानप्रदायक श्री महावीर पूजा -अथ स्थापना- (तर्ज-तुमसे लागी लगन……) आप पूजा करें, शीघ्र सिद्धी वरें, शक्ति दीजे। नाथ! मुझपे कृपा दृष्टि कीजे।।टेक.।। वीर सन्मति महावीर भगवन्…
आर्हन्त्यपरमस्थान प्रदायक श्री शांतिनाथ पूजा अथ स्थापना-गीता छंद हे शांतिजिन! तुम शांति के, दाता जगत विख्यात हो। इस हेतु मुनिगण आपके, पद में नमाते माथ को।। आर्हन्त्य परमस्थान स्वामी, आपको जो पूजते। आर्हन्त्य लक्ष्मी प्राप्तकर वे, भव दु:खों से छूटते।।१।। ॐ ह्रीं अर्हं आर्हन्त्यपरमस्थानप्रदायक! श्रीशांतिनाथतीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं अर्हं आर्हन्त्यपरमस्थानप्रदायक! श्रीशांतिनाथतीर्थंकर!…
साम्राज्यपरमपदप्रदायक श्री शीतलनाथ पूजा -अथ स्थापना (शंभुछंद)- हे शीतल तीर्थंकर भगवन्! त्रिभुवन में शीतलता कीजे। मानस शारीरिक आगंतुक, त्रय ताप दूर कर सुख दीजे।। चारण ऋद्धीधारी ऋषिगण, निज हृदय कमल में ध्याते हैं। साम्राज्य परमपद स्वामी का आह्वान कर हर्षाते हैं।।१।। ॐ ह्रीं अर्हं साम्राज्यपरमस्थानप्रदायक! श्रीशीतलनाथतीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं अर्हं साम्राज्यपरमस्थानप्रदायक!…
सुरेन्द्रपरमस्थानप्रदायक श्री पार्श्वनाथ पूजा -अथ स्थापना- (तर्ज-गोमटेश जय गोमटेश मम हृदय विराजो……..) पार्श्वनाथ जय पार्श्वनाथ, मम हृदय विराजो-२ हम यही भावना भाते हैं, प्रतिक्षण ऐसी रुचि बनी रहे। हो रसना में…
पारिव्राज्य परमस्थानप्रदायक श्री नेमिनाथ पूजा -अथ स्थापना- (तर्ज-करो कल्याण आतम का……) नमन श्री नेमि जिनवर को, जिन्होंने स्वात्मनिधि…