तीर्थंकर धर्मचक्र विधान
तीर्थंकर धर्मचक्र विधान 01. मंगलाचरण 02. समवसरण पूजा 03. तीर्थंकर धर्मचक्र पूजा
तीर्थंकर धर्मचक्र विधान 01. मंगलाचरण 02. समवसरण पूजा 03. तीर्थंकर धर्मचक्र पूजा
पूजा नं. 2 तीर्थंकर धर्मचक्र पूजा -अथ स्थापना-नरेन्द्र छंद- अष्टम भूमी बाद प्रथम, कटनी वैडूर्य मणी की है। बारह कोठे अरु चार गली, से सोलह बनी सीढ़ियां हैं।। चूड़ी सम गोल इसी ऊपर, चारों दिश में यक्षेंद्र खड़े। वे शिर पर धर्मचक्र धारें, उन पूजत सुख सौभाग्य बढ़े।।१।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितयक्षेंद्रमस्तकोपरिविराजमान-चतुश्चतुर्धर्मचक्रसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट्…
पूजा नं.-1 समवसरण पूजा स्थापना—शंभुछंद तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठप्रभु समवसरण की रचना है। इसमें हैं आठ भूमि सुंदर यह धनकुबेर की रचना है।। अंतर का वैभव है अनंत, तीर्थंकर त्रिभुवन के स्वामी। मैं वंदूं चौबीसों जिनवर, हो जाऊं निजसंपति स्वामी।।१।। —दोहा— आह्वानन कर मैं जजूं, तीर्थंकर परमेश। आवो आवो नाथ अब, तिष्ठो हृदय हमेश।।२।। ॐ…
तीर्थंकर धर्मचक्र विधान मंगलाचरण ऊँ नमो मंगलं कुर्यात्, ह्रीं नमश्चापिमंगलं। मोक्षबीजं महामंत्रं, अर्हं नम: सुमंगलम्।।१।। मानस्तंभा: सरांसि, प्रविमल—जल—सत्खातिका—पुष्पवाटी। प्राकारो नाट्यशालाद्वितयमुपवनं वेदिकांतर्ध्वजाद्या:।। शाल: कल्पद्रुमाणां, सुपरिवृत्त—वनं स्तूप हर्म्यावली च। प्राकार: स्फाटिकोन्त—र्नृसुर—मुनिसभा पीठिकाग्रे स्वयंभू।।२।। श्रेयान् श्रीवासुपूज्यो वृषभजिनपति: श्रीद्रुमांकोऽथधर्म:। हर्यंक: पुष्पदन्तो मुनिसुव्रतजिनोऽनंतवाक् श्रीसुपार्श्व:।। शान्ति: पद्मप्रभोऽरो विमलविभुरसौ वर्द्धमानोऽप्यजांक:। मल्लिर्नेमिर्नमिर्मां सुमतिरवतु सच्छ्रीजगन्नाथधीरम्१।।३।। द्वौ कुंदेन्दुतुषारहारधवलौ द्वाविन्द्रनीलप्रभौ। द्वौै बंधूकसमप्रभौ जिनवृषौ द्वौ चप्रियंगुप्रभौ।। शेषा:…
एकीभाव स्तोत्र विधान-पूजन 01. मंगलाचरण 02. एकीभाव स्तोत्र विधान-पूजन
एकीभाव स्तोत्र विधान-पूजन -स्थापना (शंभु छंद)- तीर्थंकर प्रभु की भक्ति सदा ही, सच्चे सुख को देती है। वह दुर्गति का वारण करके, भव-भव के दुख हर लेती है।। श्रीवादिराज मुनि ने प्रभु भक्ति से, तन का कुष्ट मिटाया था। निज काया को कर स्वस्थ स्वर्णमय, धर्मरूप दर्शाया था।।१।। -दोहा- प्रभु भक्ती में रच दिया, एकीभाव…
मंगलाचरण अरहंत देव को नमूँ जो सौख्य प्रदाता, सिद्धों को नमूँ जो हैं भवि को सिद्धिप्रदाता। आचार्य, उपाध्याय, साधु परम पूज्य हैं, इनकी करूँ मैं वन्दना दें सर्व सौख्य है।।१।। श्री ऋषभदेव वीर जिन हैं चतुर्विंशती, प्रणमूँ मैं भक्तिभाव से उन चरण में नती। गौतम गणीश आदि गणधरों को नित नमूँ, उन क्रम परम्परा में…
सप्तपरम स्थान विधान 01. मंगलाचरण 02. सप्तपरमस्थान तीर्थंकर पूजा (समुच्चय पूजा) 03. सज्जातिपरमस्थानप्रदायक श्री ऋषभदेव जिनपूजा 04. सद्गृहस्थ परमस्थानप्रदायक श्री चन्द्रप्रभ पूजा 05. पारिव्राज्य परमस्थानप्रदायक श्री नेमिनाथ पूजा 06. सुरेन्द्रपरमस्थानप्रदायक श्री पार्श्वनाथ पूजा 07. साम्राज्यपरमपदप्रदायक श्री शीतलनाथ पूजा 08. आर्हन्त्यपरमस्थान प्रदायक श्री शांतिनाथ पूजा 09. निर्वाणपरमस्थानप्रदायक श्री महावीर पूजा 10. बड़ी जयमाला
बड़ी जयमाला -शंभु छंद- हे आदिनाथ! हे आदीश्वर! हे वृषभ जिनेश्वर! नाभिललन! पुरुदेव! युगादिपुरुष! ब्रह्मा, विधि और विधाता मुक्तिकरण।। मैं अगणित बार नमूँ तुझको, वन्दूं ध्याऊँ गुणगान करूँ। स्वात्मैक परम आनन्दमयी, सुज्ञान सुधा का पान करूँ।।१।। षट् मास योग में लीन रहे, लंबित भुज नासा दृष्टी थी। निज आत्म सुधारस पीते थे, तन से बिल्कुल…