08. व्रतों की स्थिरता के लिए भावनायें
व्रतों की स्थिरता के लिए भावनायें अहिंसा आदि पाँच व्रतों को स्थिर करने के लिये पाँच-पाँच भावनायें होती हैं अर्थात् ‘मैं हिंसा नहीं करूँगा, असत्य नहीं बोलूँगा’ इत्यादि रूप से जिसने पाँच पापों का त्याग कर दिया है, उसको नित्य ही इन व्रतों की दृढ़ता के लिए भावनाओं को भाते रहना चाहिए। जिनका बार-बार अनुशीलन…