01.4 मूलगुण अधिकार का सार श्री कुंदकुंद देव द्वारा रचित मूलाचार ग्रंथ की टीका के प्रारंभ में सिद्धान्त चक्रवर्ती श्री वसुनंदि आचार्य ने भूमिका में कहा है कि यह ग्रंथ आचारांग के आधार से लिखा गया है और आचारांग समस्त श्रुतस्कंध का आधारभूत है। यथा- जो श्रुतस्कंध का आधारभूत है, अट्ठारह हजार पद परिमाण है,...
मूलाचार सार सकल वाङ्मय द्वादशांगरूप है। उसमें सबसे प्रथम अंग का नाम आचारांग है और यह संपूर्ण श्रुतस्कंध का आधारभूत ‘श्रुतस्कंधाधारभूतं'१ है। समवसरण में भी बारह सभाओं में से सर्वप्रथम सभा में मुनिगण रहते हैं। उनकी प्रमुखता करके भगवान् की दिव्यध्वनि में से प्रथम ही गणधरदेव आचारांग नाम से रचते हैं। इस अंग की १८...
आर्यिका चर्या आर्यिका चन्दनामती आधुनिक परिवेश में चाहे श्रावक हो या मुनि, श्राविका हो या आर्यिका, स्पष्ट रूप में उनकी चर्या का ज्ञान होना आवश्यक है। आचार्यश्री यतिवृषभ स्वामी ने कहा है- पंचमकाल के अंत तक मुनि-आर्यिका, श्रावक-श्राविका का चतुर्विध संघ वर्तन करेगा। अभी तो पंचमकाल के मात्र २५४८ वर्ष व्यतीत हुए हैं, शेष १८४५२...
जिनागम में शासन देव-देवी णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं।णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।। जिनप्रतिमा का लक्षण (यक्ष-यक्षी समेत) शान्तप्रसन्नमध्यस्थनासाग्रस्थाविकारकृत।सम्पूर्णभावरूपानुविद्धांगं लक्षणान्वितम्।। रौद्रादिदोषनिर्मुक्तप्रातिहार्यां - कयक्षयुक्।निर्माप्य विधिना पीठे जिनबिम्बं निवेशयेत्।। (प्रतिष्ठासारोद्धार) अर्थ-जिसके मुख की आकृति शांत हो, प्रसन्न हो, मध्यस्थ हो, नेत्र विकाररहित हो, दृष्टि नासिका के अग्रभाग पर हो, जो केवलज्ञान के सम्पूर्ण भावों से सुशोभित...
श्री गौतमस्वामी का जीवन परिचय आर्यखंड में एक ब्राह्मण नाम का नगर था। वहाँ एक शांडिल्य नाम का ब्राह्मण रहता था। उसकी भार्या का नाम स्थंडिला था, वह ब्राह्मणी बहुत ही सुन्दर और सर्व गुणों की खान थी। इस दम्पत्ति के बड़े पुत्र के जन्म के समय ही ज्योतिषी ने कहा था कि यह गौतम...