मूलाचार पूर्वार्ध
भगवान महावीर के शासनकाल में श्री गौतम गणधर के बाद आचार्य श्री कुन्दकुन्ददेव का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है | उन्होंने ८४ पाहुड ग्रंथों की रचना की जिनमें से मूलाचार भी एक है | आचार्य श्री कुन्दकुन्ददेव -अपर नाम वट्टकेर आचार्य लिखित मूलाचार ग्रन्थ द्वादशांग के एक अंग आचारांग का अंश रूप है | इस ग्रन्थ में बारह अधिकार हैं जिसमें मूलाचार पूर्वार्ध में सात अधिकार हैं जिसमें ६९४ गाथाएं हैं | मूलाचार ग्रन्थ मुनि- आर्यिकाओं का संहिता ग्रन्थ है | इस मूलाचार ग्रन्थ की गाथाओं पर सिद्धांतचक्रवर्ती श्री वसुनंदि आचार्य आचारवृत्ति टीका लिखी तथा जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी , सरस्वती स्वरूपा गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने इसी आचारवृत्ति टीका का हिन्दी अनुवाद किया जिससे वर्तमान युग में साधुओं के लिए अपनी चर्या को समझना और सरल हो गया | इस मूलाचार ग्रन्थ को पढकर सभी संतों को एकलविहार न करने का नियम लेना चाहिए |