महातीर्थ व्रतादि संग्रह
अनादिकाल से व्रतों को करने की परंपरा
चली आ रही है , व्रत सादि और अनादि दो प्रकार के हैं | व्रतों की महिमा अपरम्पार है | इन व्रतों को करने से कर्मों का क्षय होता है ,आगे क्रम से उत्तम गति की प्राप्ति , पुनः क्रम से मोक्ष की प्राप्ति होती है |
प्रस्तुत पुस्तक में श्री गौतम स्वामी प्रणीत निषीधिकादण्डकआदि के आधार से महातीर्थ व्रत , वीर भक्ति व्रत , पंचाचार व्रत , चौरासी लाख उत्तर गुण व्रतों का वर्णन किया है | ये चारों ही बहुत ही महत्वपूर्ण हैं | व्रतों के प्रभाव से दुःख दूर होकर सुख संतोष की प्राप्ति होती है |