सृष्टि की व्यवस्थायह सृष्टि अनादि है, अनंत है और शाश्वत है। इसको रचने वाला कोई ईश्वर, सृष्टा, ब्रह्मा या विधाता नहीं है, प्रत्युत् यह स्वयंसिद्ध है, प्राकृतिक है, अनादिकाल से है और अनंतकाल तक रहेगी।
वीतराग चारित्र एवं उसका फल निश्चयचारित्र किनके होता है ? पडिकमणपहुदिकिरियं, कुव्वंतो णिच्छयस्स चारित्तं। तेण दु विरागचरिए, समणो अब्भुट्ठिदो होदि।। (नियमसार गाथा-१५२) निश्चयनय आश्रय से जो, प्रतिक्रमणादि क्रियाएँ होती हैं। निश्चयचरित्रधारी मुनि के वे, सभी क्रियाएँ होती हैं।। इस हेतु उन्हें ही वीतराग, मुनि की संज्ञा मिल जाती है। श्रेणी में चढ़कर क्षण भर में,…
मुनियों की सरागचर्या : कुन्दकुन्द की दृष्टि में बारह अनुप्रेक्षा अद्ध्रुवमसरणमेगत्त-मण्णसंसारलोगमसुचित्तं। आसवसंवर णिज्जर, धम्मं बोिंह च चिंतेज्जो।। (द्वादशानुप्रेक्षा गाथा-२) —शंभु छन्द— अध्रुव-अशरण-एकत्व और, अन्यत्व तथा संसार-लोक। अशुचित्व तथा आस्रव संवर, निर्जरा-धर्म अरु ज्ञान बोध।। इन द्वादश अनुप्रेक्षाओं का, चिंतन साधू जो करते हैं। उनकी आत्मा में तीव्ररूप, वैराग्यभाव परिणमते हैं।। अर्थ—अनित्य, अशरण, एकत्व, अन्यत्व, संसार,…
श्री कुन्दकुन्ददेव द्वारा प्रतिपादित श्रावक धर्म चारित्र के दो भेद जिणणाणदिट्ठिसुद्धं, पढमं सम्मत्तचरणचारित्तं। विदियं संजमचरणं, जिणणाणसदेसियं तं पि।। (चारित्रपाहुड़ गाथा-५) —शंभु छन्द— सम्यक्त्वचरण चारित्र प्रथम, श्री जिनवर ने उपदेशा है। जो सम्यग्दर्शन और ज्ञान, से शुद्ध चरित निर्देशा है।। दूजा है संयमचरण चरित जो, सकल-विकल द्वयरूप कहा। जिनज्ञान देशना से विकसित, चरणानुयोग में यही कहा।।…
श्री कुन्दकुन्दाचार्य का जिनभक्ति अनुराग तीर्थंकर स्तुति थोस्सामि हं जिणवरे, तित्थयरे केवली अणंतजिणे। णरपवरलोयमहिए, विहुयरयमले महप्पण्णे।। (चौबीस तीर्थंकर भक्ति गाथा-१) —शंभु छन्द— श्री जिनवर तीर्थंकर केवलज्ञानी, अर्हत्परमात्मा हैं। जो हैं अनन्तजिन मनुजलोक में, पूज्य परम शुद्धात्मा हैं।। निज कर्म मलों को धो करके, जो महाप्राज्ञ कहलाते हैं। ऐसे जिनवर की स्तुति कर, चरणों में शीश…
गंधिला (Gndhila) विदेह क्षेत्र में गंधिला नाम का एक देश है , जो कि विदेह क्षेत्र के अन्दर पूर्व-पश्चिम में २२१२ ७/८ योजन विस्तृत है और दक्षिण उत्तर में १६५८२ २/१ योजन लम्बा है। इस क्षेत्र के बीचोबीच में ५० योजन चौड़ा २५ योजन ऊँचा २२१२ ७/८ योजन लम्बा विजयार्ध पर्वत है। इस विजयार्ध में…