17. दैव एवं पुरुषार्थ
दैव एवं पुरुषार्थ देवादेव अर्थसिद्धिश्चेद्धैवं पौरुषत: कथं। दैवतश्चेदनिर्मोक्ष: पौरुषं निष्फलं भवेत्।।८८।। यदि देव (भाग्य) से ही कार्यों की सिद्धि मानो तो देव पुरुषार्थ से वैâसे बना; यदि देव का निर्माण देव से ही होता है तो किसी को मोक्ष नहीं हो सकेगा और पुरुषार्थ भी निष्फल हो जाएगा। किंतु ऐसी बात नहीं है। वर्तमान के…