रक्षाबंधन कथा परीक्षा : सही उत्तर एवं परीक्षाफल
Answer Rakshabhandan Paper 20-8-24…
अथ अष्टदलस्थापितजयादिदेवतार्चना (अब अष्टदल कमल में स्थापित जया आदि आठ देवियों की क्रम से पूजा करना है। इन जयादि देवियों की पूजा के लिए एक थाल में पूजन सामग्री लेकर जिनेन्द्रदेव के चरण कमलों में अवतरणविधि करके अपने पास में रख लेवें। इसी सामग्री से देवियों की पूजा करें।) पुष्पांजलि:-नरेन्द्र छंद त्रिभुवन विजयी कामदेव को…
यागमण्डल पूजा (समुच्चय पूजा) -शंभु छंद- अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय, साधु पंचपरमेष्ठी हैं। त्रयकालिक चौबिस तीर्थंकर, शत इन्द्रों से नित वंदित हैं।। चउ मंगल लोकोत्तमशरणं, जिनधर्म जिनागम जिनप्रतिमा। जिन चैत्यालय इन सोलह को, मैं पूजूँ इनकी अति महिमा।।१।। ॐ ह्रीं श्री पंचपरमगुरुत्रैकालिकतीर्थंकर-चतुर्मंगललोकोत्तमशरण-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-चैत्यालय समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्री पंचपरमगुरुत्रैकालिकतीर्थंकर-चतुर्मंगललोकोत्तमशरण-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य-चैत्यालय समूह! अत्र तिष्ठ…
अथ यागमंडलवर्तन विधान वेद्यां मण्डलमालिखार्चितासितैश्चूर्णै: सिताकल्पभृन्- नागाधीश धनेशपीतवसनालंकारपीतैश्च तै:। नीलैर्नीलभ नीलवेषसुमनो रक्ताभ रत्तैस्ततो, रक्ताकल्पक कृष्णवेशविलसत्कृष्णैश्च कृष्णप्रभ।।१।। -शंभु छंद- वेदी में यागमण्डल रचिये, हे नागाधिप! सित चूर्णों से। धनपति पीतांबर पीतचूर्ण, नीलभसुर नीले वर्णों से।। हे रक्ताकल्पक लालचूर्ण, कृष्णाप्रभ काले चूर्णों से। ये रत्नचूर्ण पाँचों रंग के, इनसे मंडल रचिये विधि से।।१।। ॐ ह्रीं श्वेतपीतहरितारुणकृष्णमणिचूर्णं स्थापयामि…
महामृत्युंजय स्तोत्र -प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती तीन लोक का हर प्राणी जिनके चरणों में झुकता है। तीन लोक का अग्रभाग जिनकी पावनता कहता है।। जन्म मृत्यु से रहित नाथ वे मृत्युञ्जयि कहलाते हैं। मृत्युञ्जयि प्रभु के वन्दन से जन्म मृत्यु नश जाते हैं।।१।। जिसने जन्म लिया है जग में मृत्यू उसकी निश्चित है। इसी जन्ममृत्यू के…
महाव्याधि विनाशक श्री मृत्युंजय विधान तर्ज-जन्म मानव का पाया है जो….. यह तो जिनवर का दरबार है, यहाँ भक्ति तो करना पड़ेगा। मन में यदि भक्ति की शक्ति है, तन से व्याधि को भगना पड़ेगा।।टेक.।। आज कलियुग का अभिशाप है, …
श्री ऋषभदेव विधान 01. श्री ऋषभदेव स्तुति 02. श्री ऋषभदेव पूजा 03. गणधर पूजा 04. सर्वसाधु पूजा 05. आर्यिका पूजा 06. सहस्रनाम मंत्र पूजा 07. पूजा-06 08. पूजा-07 09. पूजा-08 10. पूजा-09 11. पूजा-10 12. पूजा-11 13. पूजा-12 14. पूजा-13 15. पूजा-14 16. श्री ऋषभदेव सिद्ध भगवान पूजा 17. बड़ी जयमाला
बड़ी जयमाला -दोहा- तीनलोक की सम्पदा, करें हस्तगत भव्य। तुम जयमाला कंठधर, पूरें सब कर्तव्य।।१।। चाल-हे दीनबंधु…. जैवंत मुक्तिकन्त देवदेव हमारे। जैवंत भक्त जन्तु भवोदधि से उबारे।। हे नाथ! आप जन्म के छह मास ही पहले। धनराज रत्नवृष्टि करें मातु के महले।।१।। माता की सेव करतीं श्री आदि देवियाँ। अद्भुत…
पूजा नं.-15 श्री ऋषभदेव सिद्ध भगवान पूजा अथ स्थापना (तर्ज—ऐ माँ तेरी सूरत….) शिवतरु की जड़ सम्यग्दर्शन, इस बिना मोक्षफल क्या होगा। भगवान्! तुम्हारी भक्ती से, बढ़ करके मोक्षपथ क्या होगा।।टेक.।। भक्ती ही तो समकित, निश्चय व्यवहार द्विविध। स्वात्मा की श्रद्धा ही, निश्चय सम्यक्त्व सहित।। तीर्थंकर प्रभु की श्रद्धा बिन, निश्चय समकित भी क्या होगा।भग.।।१।।…