15. पूजा नं.-14
पूजा नं.-14 पाँच भरत पण ऐरावत में चौथा काल जभी हो। चौबीस चौबिस तीर्थंकर प्रभु जन्म धरें सुकृती हो।। इक सौ साठ विदेह क्षेत्र में सतत तीर्थंकर होते। इन सबका आह्वानन कर हम, भव भव कल्मष धोते।।१।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य दिग्वाससादि-अष्टोत्तरशतनाममंत्रसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य दिग्वाससादि-अष्टोत्तरशतनाममंत्रसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:…