05.3 मुनि और आर्यिका की चर्या में अन्तर
मुनि और आर्यिका की चर्या में अन्तर साधु का लक्षण वीतरागता है, पूर्ण वीतरागता यथाख्यातचारित्र में होती है, उस परमोच्च भाव का ध्येय बनाकर भव्य जीव मोक्षमार्ग पर आरूढ़ होते हैं। ‘‘सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणिमोक्षमार्ग:’’ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र मोक्षमार्ग है। जीवादि सात तत्त्वों के श्रद्धान को सम्यग्दर्शन कहते हैं अथवा निज आत्मा के श्रद्धान को सम्यग्दर्शन कहते…