श्री चंदनामती माताजी का परिचय (मुख्य)
१०८ फुट भगवान ऋषभदेव प्रतिमा निर्माण की कुशल मार्गदर्शिका प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी का परिचय प्रस्तुति-आर्यिका स्वर्णमती (संघस्थ-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी) जन्म- १८ मई १९५८, ज्येष्ठ कृ. अमावस्या, वीर नि. सं. २४८४ जन्मस्थान- टिकैतनगर (बाराबंकी) उ.प्र. नाम- कु. माधुरी जैन माता-पिता- श्रीमती मोहिनी देवी जैन (आर्यिका रत्नमती माताजी) एवं श्री छोटेलाल जैन बहन-भाई- आठ…
जानें, क्या है रक्षाबन्धन पर्व की कथा और क्या है हमारा कर्त्तव्य प्राचीनकाल से कृषि प्रधान इस भारतदेश में ऋषियों की परम्परा चली आ रही है। इन्हीं की त्याग तपस्या के बल पर देश का मस्तक गौरव से ऊँचा उठा हुआ है।भगवती आराधना में आचार्य श्री शिवकोटि ने बताया है- यस्य देशं समाश्रित्य साधव: कुर्वते…
चौंसठ ऋद्धि विधान 01. चौबीस तीर्थंकर एवं गणधर पूजा 02. चौंसठ ऋद्धि पूजा 03. बुद्धि आदि ऋद्धि पूजा 04. विक्रिया ऋद्धि पूजा 05. चारण ऋद्धि पूजा 06. तपऋद्धि पूजा 07. बलऋद्धि पूजा 08. औषधि ऋद्धि पूजा 09. रस ऋद्धि पूजा 10. अक्षीणऋद्धि पूजा 11. गणधर वलय स्तुति
गणधर वलय स्तुति अन्त्य जयमाला —पद्यानुवाद-दोहा— जिनवर गणधर साधुगण, ऋद्धि सिद्धि के नाथ। सर्वविघ्नहर्ता इन्हें, नमूँ नमाकर माथ।।१।। —चौबोल छंद— जीता अंत: शत्रूगण को, ‘‘जिन’’ कहलाए गरिष्ठ भी। देशावधि परमावधि सर्वावधि संयुत मुनिराज सभी।। कोष्ठ बीज आदिक ऋद्धीयुत, पदानुसारी ऋद्धीयुत। सब गणधर की स्तुति करूँ मैं, उन गुणप्राप्ति हेतु संतत।।२।। जो संभिन्नश्रोतृ ऋद्धीयुत, स्वयंबुद्ध मुनिनाथ…
पूजा नं.-10 अक्षीणऋद्धि पूजा —अथ स्थापना (शंभु छंद)— जो मुनि उदारमन हो करके, सब जन के बंधू बनते हैं। बहु भेद तपश्चर्या करके, अक्षीण ऋद्धि को लभते हैं।। उनकी चरणांबुज की पूजा से, जन सर्व समृद्धि करते हैं। जो विधिवत् पूजें गुण गावें, उनके मनवांछित फलते हैं।।१।। ॐ ह्रीं द्विविध अक्षीणऋद्धिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट्…
पूजा नं.-9 रस ऋद्धि पूजा —अथ स्थापना (चौबोल छंद)— जिन मुनियों ने नाना विध रस, परित्याग तपधारा है। उनके ही रस ऋद्धी प्रगटती, गुरु ने यही उचारा है।। विष भी अमृत करने वाले, ऐसे गुरु को नित्य जजूँ। आह्वानन स्थापन करके, परमानंद पियूष भजूँ।।१।। ॐ ह्रीं षड्विधरसऋद्धिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं षड्विधरसऋद्धिसमूह!…
पूजा नं.-8 औषधि ऋद्धि पूजा —अथ स्थापना (गीता छंद)— अट्ठाइस मूलगुणों से युत रोगादि परीषह के विजयी। उन मुनि के औषधि ऋद्धि प्रगट होती वे ही कर्मारिजयी।। सब रोग शोक दारिद्र नशें इन गुरु की पूजा करने से। ये औषधि ऋद्धी आठ भेद आह्वानन कर पूजूँ रुचि से।।१।। ॐ ह्रीं अष्टविध औषधिऋद्धिसमूह! अत्र अवतर अवतर…
पूजा नं.-7 बलऋद्धि पूजा —अथ स्थापना—गीता छंद— मन वचन तन का करें निग्रह आत्म अनुग्रह नित करें। वे साधु त्रिकरण शुद्धि कर निज आत्म को पावन करें।। मनबल बचनबल कायबल की ऋद्धि को प्रगटित करें। उन साधु का आह्वानन कर निज शक्ति को विकसित करें।।१।। ॐ ह्रीं त्रिविधबलऋद्धिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं…