बारह अनुप्रेक्षा (प्राकृत) मंगलाचरण सिद्धे णमंसिदूण य झाणुत्तमखवियदीहसंसारे। दह दह दो दो य जिणे दह दो अणुपेहणा वुच्छं।।१।। जो उत्तम ध्यान के द्वारा दीर्घ संसार का नाश कर चुके हैं ऐसे सिद्ध भगवान को नमस्कार होवे। पुन: दस-दस, दो और दो ऐसे (१०+१०+२+२=२४) चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार करके मैं दस और दो अर्थात् बारह अनुप्रेक्षाओं…
भगवान महावीर की अहिंसा यत्खुलु कषाय योगा आणानां-द्रव्यभावरूपाणामं्। व्यपरोपणस्य करणं सुनिश्चिता भवति सा हिंसा।। श्री अमृतचन्द्र सूरि कषाय के योग से जो द्रव्य और भाव रूप दो प्रकार के प्राणों का घात करना है वह सुनिश्चित ही हिंसा कहलाती है अर्थात् अपने और पर के भावप्राण और द्रव्य प्राण के घात की अपेक्षा हिंसा के…