आर्यिका श्री १०५ स्वस्थमति माता जी पूर्व का नाम : बाल ब्रह्मचारिणी शशि दीदी पिता का नाम : श्री धन्नालाल जी जैन माता का नाम : …
आर्यिका श्री १०५ तथ्यमति माता जी पूर्व का नाम : बाल ब्रह्मचारिणी भारती दीदी पिता का नाम : श्री बुधमल जी जैन (चौधरी) माता का नाम : …
आर्यिका श्री १०५ वात्सल्यमति माता जी पूर्व का नाम : बाल ब्रह्मचारिणी साधना दीदी पिता का नाम : स्व.श्री गुलझारी लाल जी जैन माता का नाम : …
आर्यिका श्री १०५ पथ्यमति माता जी पूर्व का नाम : बाल ब्रह्मचारिणी रजनी दीदी पिता का नाम : श्री वीरेन्द्र कुमार जैन माता का नाम : …
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र में षट काल परिवर्तन होता रहता है | जम्बूद्वीप में 458 अकृत्रिम चैत्यालय हैं |
जैन दर्शन जिसके द्वारा वस्तु तत्त्व का निर्णय किया जाता है वह दर्शनशास्त्र है। कहा भी है-‘‘दृश्यते निर्णीयते वस्तुतत्त्वमनेनेति दर्शनम्।’’ इस लक्षण से दर्शनशास्त्र तर्क-वितर्क, मन्थन या परीक्षास्वरूप हैं जो कि तत्त्वों का निर्णय कराने वाले हैं। जैसे-यह संसार नित्य है या अनित्य ? इसकी सृष्टि करने वाला कोई है या नहीं ? आत्मा का…
जैसा कि कहा गया है |-“सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्ग:” अर्थात् सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान -सम्यग्चारित्र रूप रत्नत्रय की एकता ही मोक्ष को ले जाने वाला समीचीन मार्ग है | इस रत्नत्रय के ब्यवहार एवं निश्चय ऐसे दो भेद ग्रन्थ में वर्णित है ब्यवहार रत्नत्रय ही निश्चयनि रत्नत्रय के लिए कारण माना जाता हैं
आर्यिकाओं की नवधाभक्ति आगमोक्त है आर्यिकाएँ यद्यपि उपचार से महाव्रती हैं फिर भी वे अट्ठाईस मूलगुणों को धारण करती हैं, नवधाभक्ति की पात्र हैं और सिद्धांत ग्रंथ आदि को पढ़ने का, लिखने का उन्हें अधिकार है। इस विषय पर मैं आपको आगम के परिप्रेक्ष्य में बताती हूँ-चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागरजी महाराज की परम्परा में जो…
गुरु-शिष्य की व्यवस्था जो रत्नत्रय को धारण करने वाले नग्न दिगंबर मुनि हैं वे गुरु कहलाते हैं। इनके आचार्य, उपाध्याय, साधु ये तीन भेद माने हैं। ये तीनों प्रकार के गुरु अट्ठाईस मूलगुण के धारक होते हैं। उनको बताते हैं- वदसमिदिंदियरोधो लोचो आवासयमचेलमण्हाणं। खिदिसयणमदंतवणं ठिदिभोयणमेयभत्तं च।। एदे खलु मूलगुणा समणाणं जिणवरेहिं पण्णत्ता। एत्थ पमादकदादो आइचारादो…