आओ जानें ! तेरहद्वीप रचना में क्या-क्या है? धर्मप्रेमी बंधुओं! हस्तिनापुर की पावन वसुन्धरा पर नवनिर्मित तेरहद्वीप रचना के बारे मेें आपको जिज्ञासा होगी कि यह क्या है ? कहाँ है ? और इसे धरती पर साकार करने का लक्ष्य क्या है ? इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको क्रमश: प्राप्त करके तेरहद्वीप की अद्वितीय…
कौन करते हैं उत्तम ध्यान ज्ञानार्णव ग्रन्थ में आचार्य श्री शुभचन्द्र स्वामी ने ध्यान का वर्णन करते हुए कहा है— शतांशमपि तस्याद्य, न कश्चिद्वक्तुमीश्वरः। तदेतत्सुप्रसिद्ध्यर्थं, दिगमात्रमिह वण्र्यते।। अर्थात् द्वादशांग सूत्र में जो ध्यान का लक्षण विस्तार सहित कहा गया है, उसका शतांश—सौवां भाग भी आज कोई कहने में समर्थ नहीं है, फिर भी उसकी प्रसिद्धि…
(९) उत्तमआकिंचन्य धर्म (नाटिका) ब्र. कु. दीपा जैन (संघस्थ) प्रात:काल की मंगल बेला है, १७-१८ साल की एक बालिका भारती स्नानादि से निवृत्त होकर अपनी सहेली ऋद्धि के घर पहुँच जाती है। ऋद्धि भी मंदिर जाने के लिए तैयार हो रही है, साथ में कुछ गुनगुना भी रही है।) भारती-ऋद्धि! तुम अभी तक तैयार…
उत्तम आकिंचन्य धर्म श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में आकिंचन्य धर्म के विषय में कहा है आविंवणु भावहु अप्पउ ज्झावहु, देहहु भिण्णउ णाणमउ।णिरूवम गय—वण्णउ, सुह—संपण्णउ परम अतिंदिय विगयभउ।।आिंकचणु वउ संगह—णिवित्ति, आिंकचणु वउ सुहझाण—सत्ति।आिंकचणु वउ वियलिय—ममत्ति, आिंकचणु रयण—त्तय—पवित्ति।।आिंकचणु आउंचियइ चित्तु पसरंतउ इंदिय—वणि विचित्तु।आिंकचणु देहहु णेह चत्तु, आिंकचणु जं भव—सुह विरत्तु।।तिणमित्तु परिग्गहु जत्थ णात्थि,…
द्वादशतप (मूलाचार ग्रन्थ से) दुविहा य तवाचारो बाहिर अब्भंतरो मुणेयव्वो। एक्कक्को विय छद्धा जधाकमं तं परूवेमो।।३४५।। आचार वृत्तिः – द्विप्रकारस्तप आचारस्तपोऽनुष्ठानं। बाह्यो बाह्यजनप्रकटः। अभ्यन्तरोऽभ्यन्तर-जनप्रकटः।एकैकोऽपि च बाह्याभ्यन्तरश्चैकैकः षोढा षड्प्रकारःयथाक्रमं क्रममनुल्लंघ्य प्ररूपयामि कथयिष्यामीति।।३४५।। बाह्यं षड्भेदं नामोद्देशेन निरूपयन्नाह— अणसण अवमोदरियं रसपरिचाओ य वुत्तिपरिसंखा। कायस्स वि परितावो विवित्तसयणासणं छट्ठं।।३४६।। आचार वृत्तिः –अनशनं चतुर्विधाहारपरित्यागः। अवमौदर्यमतृप्तिभोजनं। रसानां परित्यागो रसपरित्यागःस्वाभिलषितस्निग्धमधुराम्लकटुकादिरसपरिहारः। वृत्तेः परिसंख्या…
निर्दोष सप्तमी व्रत का स्वरूप एवं विधि निर्दोष सप्तमी व्रत की विधि निर्दोष सप्तमी व्रत भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को करना चाहिए। इस व्रत में षष्ठी तिथि से संयम ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत की समस्त विधि मुकुटसप्तमी के ही समान है, अंतर इतना है कि इसमें रात भी जागरणपूर्वक व्यतीत की जाती है अथवा रात…