गणिनी आर्यिका १०५ विज्ञाश्री माताजी की पूजन
गणिनी आर्यिका १०५ विज्ञाश्री माताजी की पूजन पाद प्रक्षालन तेरे चरणों की धूलि माता,चंदन गुलाल बने। जिसने भी लगाई मस्तक ,उज़की तकदीर बने।। स्थापना: (तर्ज- ऐ मेरे वतन….) माँ विज्ञाश्री प्रज्ञा दाता, तुम सरस्वती या जिनवाणी । हे ज्ञान ध्यान वैराग्य मूर्ति,तुम स्वानुभूति समरस खानी।। चारित्र चन्द्रिका हे माता ,चरणों मे शत -शत वंदन हो…