01. भक्ति
भक्ति (1) शीलधुरंधर सेठ सुदर्शन मुनिराज उस निर्जन वन में एक शिला पर योगमुद्रा में स्थित हैं। आगम के प्रकाश में अंत:चक्षु के द्वारा वे अपनी आत्मा को देखने का प्रयत्न कर रहे हैं। ऐसी भयंकर शीत ऋतु में वे नग्न दिगम्बर मुनि धैर्यरूपी कंबल…
भक्ति (1) शीलधुरंधर सेठ सुदर्शन मुनिराज उस निर्जन वन में एक शिला पर योगमुद्रा में स्थित हैं। आगम के प्रकाश में अंत:चक्षु के द्वारा वे अपनी आत्मा को देखने का प्रयत्न कर रहे हैं। ऐसी भयंकर शीत ऋतु में वे नग्न दिगम्बर मुनि धैर्यरूपी कंबल…
पंचमेरु विधान 01. पंचमेरु विधान 01.1 पंचमेरु पूजा 01.2 सुदर्शन मेरु पूजा 01.3 विजय मेरु पूजा 01.4 अचल मेरु पूजा 01.5 मंदर मेरु पूजा 01.6 वि़द्युन्माली मेरु पूजा 02. महार्घ्य जयमाला ***
महार्घ्य जयमाला -दोहा- चिन्मय चििंच्चतामणी, चिदानंद चिद्रूप। अमल निकल परमात्मा, परमानंद स्वरूप।।१।। नमूँ नमूँ जिन सिद्ध औ, स्वयंसिद्ध जिनबिंब। पंचमेरु वंदन करूँ, हरूँ जगत दुख नद्य।।२।। -चाल—हे दीनबन्धु- जैवंत पंचमेरु ये सौ इन्द्र वंद्य हैं। जैवंत ये मुनीन्द्र वृंद से भि वंद्य है।। जैवंत जैनसद्म ये अस्सी सु संख्य हैं। जैवंत मूर्तियाँ अनंत गुण धरंत…
पूजा नं.6 वि़द्युन्माली मेरु पूजा -स्थापना—गीता छंद- श्री मेरु विद्युन्मालि पंचम, द्वीप पुष्कर अपर में। तीर्थंकरों का न्हवन होता है सदा तिस उपरि में।। सोलह जिनालय हैं वहाँ, सुरवंद्य जिन प्रतिमा तहाँ। आह्वान कर पूजूँ सदा, मैं भक्ति श्रद्धा से यहाँ।।१।। ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपस्थविद्युन्मालिमेरुसंबंधिषोडशजिनालयजिन-बिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपस्थविद्युन्मालिमेरुसंबंधिषोडशजिनालयजिन—बिम्बसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ…
पूजा नं.5 मंदर मेरु पूजा -स्थापना—नरेन्द्र छंद- पुष्करार्ध वर द्वीप पूर्व में मंदर मेरु सोहे। उसके सोलह जिनमंदिर में जिनप्रतिमा मन मोहे।। भक्ति भाव से आह्वानन कर पूजा पाठ रचाऊँ। भव भव के संताप नाश कर स्वातम सुख को पाऊँ।।१।। ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपस्थमंदरमेरुसंबंधिषोडशजिनालयजिनिंबब समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपस्थमंदरमेरुसंबंधिषोडशजिनालयजिनिंबब समूह! अत्र तिष्ठ…
पूजा नं.4 अचल मेरु पूजा -स्थापना—गीता छंद- श्री अचलमेरु राजता है, अपर धातकि द्वीप में। सोलह जिनालय तास में, जिनिंबब हैं उन बीच में।। प्रत्यक्ष दर्शन हो नहीं, अतएव पूजूँ मैं यहाँ। आह्वान विधि करके प्रभो, थापूँ तुम्हें आवो यहाँ।।१।। ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपस्थअचलमेरुसम्बन्धिषोडशजिनालय—जिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपस्थअचलमेरुसम्बन्धिषोडशजिनालय—जिनबिम्बसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ:…
पूजा नं. 3 विजय मेरु पूजा -स्थापना—दोहा- पूर्व धातकी खंड में विजयमेरु अभिराम। जिसमें सोलह जिनभवन हैं शाश्वतगुणधाम।।१।। जिनवर प्रतिमा मणिमयी शिवसुखफल दातार। आह्वानन विधि से यहाँ पूजूँ अष्ट प्रकार।।२।। ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखंडद्वीपस्थविजयमेरुसम्बन्धिषोडशजिनालयजिन—बिंबसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखंडद्वीपस्थविजयमेरुसम्बन्धिषोडशजिनालयजिन—बिंबसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखंडद्वीपस्थविजयमेरुसम्बन्धिषोडशजिनालयजिन—बिंबसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव…
पूजा नं. 2 सुदर्शन मेरु पूजा -स्थापना—गीता छंद- त्रिभुवन भवन के मध्य सर्वोत्तम सुदर्शन मेरु है। यह प्रथम जंबूद्वीप में सर्वोच्च मेरु सुमेरु है।। सोलह जिनालय में जिनेश्वर मूर्तियाँ हैं सासती। थापूँ यहाँ उनको जजूँ, वे सर्व दुख संहारती।।१।। ॐ ह्रीं जंबूद्वीपस्थसुदर्शनमेरुसंबंधिषोडशजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं जंबूद्वीपस्थसुदर्शनमेरुसंबंधिषोडशजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:…
पंचमेरु पूजा -दोहा- चिच्चैतन्य प्रकाशमय, चिदानंद भगवान। शुद्ध सिद्ध परमात्मा, नमूँ नमूँ गुणखान।।१।। तीर्थंकर अभिषेक से, पावन पूज्य प्रसिद्ध। पंचमेरु हैं सासते, ढाई द्वीप में सिद्ध।।२।। सोलह सोलह जिनभवन, एक एक में जान। पंचमेरु के जिननिलय, हैं अस्सी परिमाण।।३।। जिनवर बिंब विराजते, सबमें इक सौ आठ। भक्तिभाव से नमत ही, होवे मंगल ठाठ।।४।। पंचमेरु मंगलकरण,…
पंचमेरु विधान -दोहा- त्रिभुवनपति सन्मति सकल, विश्ववंद्य भगवान्। जिनके वंदन से मिले, ऋद्धि सिद्धि सुखखान।।१।। प्रथम सु जंबूद्वीप में, मेरु सुदर्शन नाम। पूर्व धातकीखंड में, विजय मेरु सुखधाम।।२।। अपरधातकीद्वीप में, अचल मेरु अचलेश। पुष्करार्ध वर पूर्व में, मंदर मेरु नगेश।।३।। पश्चिम पुष्कर अर्ध में, विद्युन्माली मेरु। ढाई द्वीप विषे कहे, पावन पांचों मेरु।।४।। सोलह सोलह…