महादेवी पद्मावती प्रशंसा (पं. आशाधर सूरि विरचित) प्रस्तुति – आचार्य श्री विद्यानन्दि मुनि महाराज जय मंगलं जयतु शुभमंगलम्। जय नागपतियुवति पद्मांबिके।।१।। जय हो मंगल हो, शुभ मंगल हो। नागराज की रानी, माता पद्मावती की जय हो। मणिमुकुटरत्न कुण्डल-हारराजिते। मणिखचित-केयूर-करभूषिते।।२।। जय मंगलं जयतु शुभमंगलम्।। पल्लव।। मणि, मुकुटरत्न, कुण्डल तथा हार से सुशोभित मणियों से युक्त केयूर द्वारा अलंकृत…
विश्व प्रसिद्ध पद्मावती की देन और तारादेवी प्रस्तुति – आचार्य श्री विद्यानन्दि मुनि महाराज (जिनमते पद्मावती विश्रुता)-(अष्टांग हृदय, वाग्भट्ट, प्रस्तावना, २९) अर्थ:- जैन धर्मदर्शन की शास्त्रीय परम्परा में पद्मावती की बहुत ख्याति है। श्रीमत्पंबुजपट्टने प्रविलसन्निर्गुंडिकावासिनि। वाँछच्छी जिनदत्तरायवरदे मां पाहि पद्मावति।। (अथ पद्मावती, पृष्ठ १५, हुमचा) अर्थ:- वैभव सम्पन्न सुविख्यात पंबुजनगर (हुमचा) में विहार करने वाली…
भावश्रुतज्ञान का आधारभूत द्रव्यश्रुत- प्रथमानुयोग प्रस्तुति – आचार्य श्री विद्यानन्दि मुनि महाराज प्रथमं, करणं, चरणं द्रव्यं नम:। -(दशभक्ति, आचार्य पूज्यपाद) प्रथमानुयोगमर्थाख्यानं चरितं, पुराणमपि पुण्यम्। बोधि-समाधि निधानं बोधति, बोध: समीचीन:।। -(रत्नकरण्ड श्रावकाचार, आचार्य समन्तभद्र, २/२, संस्कृत टीका-आचार्य प्रभाचन्द्र, हिन्दी टीका-आर्यिका आदिमती माताजी अर्थ:- सम्यक् श्रुतज्ञान परमार्थ विषय का कथन करने वाले एक पुरुषाश्रित कथा और त्रेसठशलाका…
मंत्रों का प्रभाव तथा महिमा द्वादशांग जिनवाणी के ग्यारह अंग स्मृति से लुप्त हो चुके थे। बारहवें अंग दृष्टिवाद का कुछ अंश धरसेनाचार्य के पास सुरक्षित था। भगवान महावीर की दिव्यध्वनि से खिरी यह श्रुत परम्परा का अंतिम आगम भी मेरे बाद विलुप्त न हो जाये इस चिन्तन के साथ धरसेनाचार्य ने पुष्पदन्त तथा…
पद्मावती सहस्रनाम मंत्र विधि– श्री पद्मावती महादेवी की मूर्ति को मूलस्थान अथवा मन्डप आदि अगर बनाया हो तो वहाँ विराजमान करके दूसरे दिन तक वहीं पर स्थापित रखें, उनके सामने व्रतधारी पद्मासन से बैठकर और बहुत तल्लीन होकर सहस्रनाम के प्रत्येक बीजाक्षर मंत्र को गंभीरता से शुद्ध उच्चारण करते हुये एक-एक चुटकी कुंकुम या लवंग…
श्री सप्तऋषि पूजा स्थापना (अडिल्ल छंद) सुरमन्यू श्रीमन्यु आदि ऋषि सात हैं। चारण ऋद्धि समन्वित जो विख्यात हैं।। मथुरापुरि में चमत्कार इनका हुआ। रोग महामारी इन तप से भग गया।।१।। दोहा इन सातों ऋषिराज की, पूजा करें महान। रोग शोक की शांति हित, करें प्रथम आह्वान।।२।। ॐ ह्रीं चारणऋद्धिसमन्वित श्रीसुरमन्यु-श्रीमन्यु-श्रीनिचय-सर्वसुन्दर-जयवान-विनयलालस-जयमित्रनाम-सप्तऋषिसमूह! अत्र अवतर…