‘‘तदिये अतिथिसंविभागो।’’ अमृतर्विषणी टीका अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत का लक्षण गुणनिधि तपोधन मुनियों को, बस स्वपर धर्म की वृद्धि हेतु। जो दान दिया जाता अतिथिसंविभाग व्रत विशेष।। यश मंत्र प्रती उपकार आदि, से अनपेक्षित हो भक्ति से। निज शक्ति विभव के अनूसार, उपकार करे गुरु भक्ति से।। गुणों के निधान और तपरूपी धन के धारक…
सुदं मे आउस्संतो ! (श्रावक धर्म) (अध्याय ३) (प्राकृत एवं हिन्दी पद्यानुवाद) श्रीगौतमस्वामी उवाच— श्री गौतमस्वामी कहते हैं—पढमं ताव सुदं मे आउस्संतो! इह खलु समणेण भयवदा महदि-महावीरेण महा-कस्सवेण सव्वण्ह-णाणेण सव्व-लोय-दरसिणा सावयाणं सावियाणं खुड्डयाणं खुड्डियाणं कारणेण पंचाणुव्वदाणि तिण्णि गुणव्वदाणि चत्तारि सिक्खा-वदाणि बारसविहं गिहत्थधम्मं सम्मं उवदेसियाणि। तत्थ इमाणि पंचाणुव्वदाणि पढमे अणुव्वदे थूलयडे पाणादि-वादादो वेरमणं, विदिए अणुव्वदे थूलयडे…
सुदं मे आउस्संतो (श्रावक धर्म) अध्याय ३ ‘से अभिमदजीवाजीव—उवलद्धपुण्णपावआसवसंवरणिज्जरबंधमोहमहिकुसले।’ अमृतर्विषणी टीका नवपदार्थ ये जीव आदि नव तत्त्व भी कहलाते हैं व इन्हें पदार्थ भी कहा है— (१) जीव पदार्थ—जीव का लक्षण उपयोग है। उपयोग के ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग ये दो भेद हैं। ज्ञानोपयोग के स्वभावज्ञान और विभावज्ञान ये दो भेद हैं। केवलज्ञान स्वभाव ज्ञान अथवा…
‘‘विदिए पोसहोवासयं’’ अमृतर्विषणी टीका- प्रोषधोपवास शिक्षाव्रतइस प्रकार से द्वितीय शिक्षाव्रत का नाम प्रोषधोपवास है। श्री गौतमस्वामी स्वयं श्रावक प्रतिक्रमण में चतुर्थ प्रतिमा का वर्णन करते समय कहते हैं ‘‘उत्तममज्झजहण्णं तिविहं पोसहविहाणमुछिट्ठं। सगसत्तीए मासम्मि चउसु पव्वेसु कायव्वं।।’’ प्रोषधविधान के तीन प्रकार माने गये हैं— उत्तम, मध्यम और जघन्य। प्रत्येक मास के चारों पर्वों में अपनी शक्ति…
‘‘विदिए गुणव्वदे विविध—अणत्थदण्डादो वेरमणं।’’ अमृतर्विषणी टीका अनर्थदण्डविरति गुणव्रत जो अनर्थ अर्थात् बिना प्रयोजन ही दण्ड अर्थात् जीवों की हिंसा के कारण हों, उनसे विरति करना ही अनर्थदण्डविरति नाम का व्रत है। अनर्थदण्ड के ५ भेद— पापोपदेश औ हिंसा के , उपकरण दान अपध्यान तथा। चौथा है दु:श्रुति नाम लहे, पंचम प्रमादचर्या विरथा।। इस विध से…
सुदं मे आउस्संतो ! (श्रावक धर्म) (अध्याय ३)(अमृतर्विषणी टीका) श्री गौतमस्वामी कहते हैं—‘‘पढमं ताव सुदं मे आउस्संतो।’’हे आयुष्मन्तों भव्यों ! मैंने प्रथम ही सुना है। क्या सुना है ? ‘‘गिहत्थधम्मं’’ गृहस्थ धर्म सुना है। किनसे सुना है ? इह खलु— ‘‘भयवदा महदिमहावीरेण’’ यहां (विपुलाचल पर्वत पर) भगवान महतिमहावीर के श्रीमुख से सुना है। ये भगवान…
‘‘तदिये गुणव्वदे भोगोपभोग परिसंखाणं चेदि।’’ अमृतर्विषणी टीकाभोगोपभोग परिमाण गुणव्रत तीसरे गुणव्रत में भोग—उपभोग वस्तुओं का परिसंख्यान—परिमाण किया जाता है। यहाँ पहले भोग और उपभोग इन दोनों शब्दों का अर्थ कहते हैं— जो भोगे जाकर छुट जाते, वे भोग शब्द से कहलाते । ये भोजन गंध माल्य आदि, जो पुन: भोग में नहिं आते।। जिस वस्तु…
‘‘तत्थ पढमे अणुव्वदे थूलयडे पाणादिवादादो वेरमणं।’’ अमृतर्विषणी टीका अहिंसा अणुव्रतपहले अणुव्रत में स्थूलरूप से प्राणी सा से विरति है। अहिंसा अणुव्रत को समझने के लिए हिंसा के चारों भेदों का लक्षण जानना भी आवश्यक है। १. संकल्पी हिंसा-अभिप्रायपूर्वक किसी भी छोटे या बड़े जीव को मारना संकल्पी हिंसा है। २. आरंभी हिंसा-चूल्हा जलाना, चक्की पीसना,…
श्रीगौतमस्वामी उवाच— कृतिकर्म प्रयोगविधि अथ देववन्दनाक्रियायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं भावपूजा-वंदनास्तवसमेतं श्रीचैत्यभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहम् । (इस प्रतिज्ञा वाक्य को बोलकर साष्टांग या पंचांग नमस्कार करके खड़े होकर मुकुलित हाथ जोड़कर तीन आवर्त एक शिरोनति करके मुक्ताशुक्ति मुद्रा से हाथ जोड़कर सामायिक दण्डक पढ़ें।) सामायिक दण्डक णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं।। चत्तारि…