प्राणवाय पूर्व का उद्भव, विकास एवं परम्परा सारांश प्राणावाय पूर्व में विवेचित विषय को ही वर्तमान में आयुर्वेद संज्ञा दी गई है। प्रस्तुत आलेख में इस ज्ञान के मूल स्रोत, जैनचार्यों द्वारा इस ज्ञान के आधार पर रचित प्रमाणिक ग्रन्थों का विस्तार पूर्वक विवेचन किया गया है। जैनागम में द्वादशांग के अन्तर्गत बारहवें दुष्टिवादांग…
श्री सरस्वती पूजा स्थापना शंभु छंद तीर्थंकर के मुख से खिरती, अनअक्षर दिव्यध्वनी भाषा। बारह कोठों में सबके हित, परिणमती सर्वजगत् भाषा।। गणधर गुरु जिन ध्वनि को सुनकर, बारह अंगों में रचते हैं। हम दिव्यध्वनी का आह्वानन, करके भक्ती से यजते हैं।।१।। ॐ ह्रीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीमातः! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीमातः!…
ज्ञानमूर्ति सरस्वती या कुंदेन्दुतुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता । या वीणा वर दंड मंडित करा, या श्वेत पदमासना ।। सा ब्रह्मार्चित शंकर प्रभृतिभिर्दैवे, सदा वंदिता । सा माम् पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा ।। ज्ञान की देवी वीणा वादिनी, माँ शारदे, वाग्देवी आदि नामों से स्तुल्य सरस्वती माँ ज्ञान की मूर्ति हैं,…
जयदु सुद देवदा वाग्देवी-श्रुतदेवी-जैन सरस्वती यह प्राणी संसार सागर में परिभ्रमण करता हुआ अनेक कष्ट झेल रहा है, कुछ प्राणी हैं, जो इस संसार-सागर से पार होकर स्थायी सुख की खोज में हैं। धर्मों और दर्शनों का उदय यहीं से माना जाना चाहिए। आज संसार में जितने धर्म और दर्शन है कुछेक को छोड़कर प्राय:…
पद्मावती पूजा [श्री संपत्-शुक्रवार व्रत में] जग के जीवों के शरणागत, मिथ्यात्व तिमिर हरने वाले। तुम कर्मदली तुम महाबली, शिवरमणी को वरने वाले।। हे पार्श्वनाथ! तेरी महिमा,…
जिनवाणी स्तुति वीर हिमाचल तैं निकरी, गुरू गौतम के मुख—कुण्ड ढरी है। मोह—महाचल भेद चली, जग की जड़तातप दूर करी है।। ज्ञान पयोनिधिमांहि रली, बहुभंग तरंगनिसों उछरी है। ता शुचि शारद गंगनदी प्रति, मैं अंजुलि कर शीश धरी है।। या जगमन्दिर में अनिवार अज्ञान, अन्धेर छयो अति भारी। श्री जिनकी धुनि दीप—शिखासम, जो निंह होत…
पद्मावती की देन पण्डित कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री स्वामी पात्रकेसरी – जिनसेनाचार्य ने (विक्रम की नवमी शती) अपने महापुराण के प्रारम्भ में पात्रकेसरी नाम के एक आचार्य का स्मरण किया है तथा श्रवणबेलगोला के चन्द्रगिरिपर्वत पर अंकित एक शिलालेख में लिखा है- ‘‘महिमा स पात्रकेसरिगुरो: परं भवति यस्य भक्त्यासीत्। पद्मावती सहाया त्रिलक्षणकदर्शनं कर्तुम्।।’’ उस…