समवसरण की आरती
समवसरण की आरती तर्ज—तन डोले...................... जय जय जिनवर के, समवसरण की, मंगल दीप प्रजाल के, मैं आज उतारूं आरतिया।। समवसरण के बीच प्रभू जी, नासादृष्टि विराजे। गणधर मुनि नरपति से शोभित, बारह सभा सुराजे।।प्रभू जी.......... ओंकार ध्वनि, सुन करके मुनि, रत रहें स्व पर कल्याण में, मैं आज उतारूं आरतिया।।१।। चार दिशा के मानस्तम्भों...