पुण्यास्रव विधान की आरती
पुण्यास्रव विधान की आरती तर्ज—चाँद मेरे आजा रे................ आरती गुणभंडारी की-२ जहाँ पुण्यभंडार भरा उन पुण्यभंडारी की।टेक.।। मन वचन काय योगों से, कर्मों का आश्रव होता। शुभ-अशुभ उभय भेदों से, सब संसारी में होता।। आरती गुण भंडारी की।।१।। इक सौ अड़तालिस कर्मों, में पुण्य प्रकृतियाँ भी हैंं। शुभ योगों से ही बंधती, निश्चित वे प्रकृतियाँ...