श्री गौतम गणधर वाणी (भाग-३)!
श्री गौतम स्वामी के मुख से निकली चैत्यभक्ति , दैवसिक प्रतिक्रमण , पाक्षिक प्रतिक्रमण और श्रावक प्रतिक्रमण आदि रचनाएं आज हमें परम्परा से मौखिक ज्ञान से प्राप्त हैं |
इन्हीं रचनाओं में से मैटर लेकर पूज्य माताजी ने श्री गौतम गणधर वाणी पुस्तक को दस अध्यायों में विभक्त करके संकलित किया है | अमृतवर्षिणी टीका के नाम से रचित दस अध्यायों को चार भागों में प्रकाशित किया गया है | सर्वांगीण चारों अनुयोगों का ज्ञान कराने वाली इस टीका के तीसरे भाग में ” गणधर वलय मन्त्र ” एवं सुदं मे आउस्संतो ”[ मुनि धर्म ] ऐसे दो अध्याय हैं |
वास्तव में जिन्होंने साक्षात महावीर स्वामी की वाणी का ज्ञान हमें प्रदान किया उन श्री गौतम स्वामी का जितना गुणानुवाद किया जावे कम है | इस टीका के तीसरे भाग में छठी एवं सातवीं अध्याय है | गणधर वलय मन्त्र में ४८ मन्त्र हैं जिनका प्रतिदिन स्मरण करने से स्मरण शक्ति बदती है , आधि , व्याधि दूर होती है | इस टीका में इसका विस्तार से वर्णन है | सुदं मे आउस्संतो [ मुनिधर्म ] में मुनि – आर्यिका के २८ मूलगुण एवं पच्चीस भावना का वर्णन है | यह ग्रन्थ ”यथा नाम तथा गुण ” से समन्वित है | आज के पंचम काल में चतुर्थ काल की गणधर वाणी को प्राप्त कर वास्तव में हम सभी भव्यात्माओं को गौरव की अनुभूति करना चाहिए |