वंदे सुरतिरीटाग्रमणिच्छाया….! ‘वन्दे सुरतिरीटाग्रमणिच्छायाभिषेचनम्। या: क्रमेणैव सेवन्ते तदर्चा: सिद्धिलब्धये।।२१।। अमृतर्विषणी टीका— अर्थ- जो देवों के मुकुट के अग्र भाग में लगी हुई मणियों की कान्ति से अभिषेक को चरणों द्वारा सेवन करती हैं अर्थात् जिनके चरणों में वैमानिक देव सिर झुकाते हैं उन वैमानिक देवों के विमान संबंधी प्रतिमाओं को मुक्ति की प्राप्ति के लिये…
सामायिक का स्वरूप सामायिक : समभाव की साधना समभाव की साधना को सामायिक कहते हैँ । समभाव क्या ? अनुकूल और प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में समान रहना, शान्त रहना, प्रभावित नहीं होना, उद्वेलित नहीं होना, अच्छा -बुरा नहीं मानना, सम रहना। आज चारों ओर विषमता का वातावरण है, जिसके कारण सभी व्यक्ति दुखी हैँ ।…
‘‘ज्योतिषामथ लोकस्य भूतयेऽद्भुतसम्पद:। गृहा: स्वयंभुव: सन्ति विमानेषु नमामि तान्।।२०।।’’ अमृतर्विषणी टीका— अर्थ- अनन्तर ज्योतिषी देवों के विमानों में अद्भुत सम्पत्तिधारी अर्हंतों के जो शाश्वत गृह हैं उनको मैं विभूति के निमित्त नमस्कार करता हूँ ।।२०।। ज्योतिर्वासी देव ज्योतिष्क देवों के पाँच भेद हैं-सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारे। इनके विमान चमकीले होने से इन्हें ज्योतिष्क…
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) ‘‘ये व्यन्तरविमानेषु स्थेयांस: प्रतिमागृहा:। ते च संख्यामतिक्रान्ता: सन्तु नो दोषविच्छिदे।।१९।।’’ अमृतर्विषणी टीका अर्थ- व्यंतरों के आवासों में सर्वदा अवस्थित जो असंख्यात प्रतिमागृह हैं वे मेरे दोषों की शान्ति के लिये होवें ।।१९।। व्यन्तर देव व्यंतर देव- रत्नप्रभा पृथ्वी के खरभाग में व्यंतर देवों के सात भेद रहते हैं-किन्नर,…
भगवान महावीर जन्मकल्याणक महावीर जयंती पर गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की विशेष प्रेरणा- जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में विराजमान अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्नसागर जी महाराज से परामर्श करके *पूज्य माताजी ने बताया कि धवला-9 (पृ. 122), जयधवला-1 (पृ. 77) जैसे महान ग्रंथों के अनुसार चैत्र शुक्ला त्रयोदशी की रात्रि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में भगवान महावीर स्वामी का जन्म…
बच्चों का सुखद भविष्य शिक्षा और माता – पिता का कर्तव्य दौलत की भूख ऐसी लगी, कि कमाने निकल गये, जब दौलत मिली तो हाथ से रिश्ते निकल गये, बच्चों के साथ रहने की फुरसत ना मिल सकी, फुरसत मिली तो बच्चे कमाने निकल गये |परिवार मेँ बालक का जन्म सुख-दायक है ओर उसकी एक…