22. क्षान्त्यार्जवादिगुणगण
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) श्री गौतमस्वामी नवदेवों के अन्तर्गत धर्म की वंदना करते हैं— ‘‘क्षान्त्यार्जवादिगुणगणसुसाधनं सकललोकहितहेतुम्। शुभधामनि धातारं, वन्दे धर्मं जिनेंद्रोक्तम्।।६।।’’ अमृतर्विषणी टीका— अर्थ— जो क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि गुणों के समूह का साधन है, संपूर्ण लोक के हित का का हेतु है और शुभ—मोक्षस्थान में पहुँचाने वाला है ऐसे जिनेंद्रदेव द्वारा…