जिनगुण सम्पत्ति विधान समुच्चय-पूजन
जिनगुण सम्पत्ति विधान समुच्चय-पूजन -गीता छंद- जिनगुणमहासंपत्ति के, स्वामी जिनेश्वर को नमूँ। त्रिभुवनगुरू श्रीसिद्ध को, वन्दन करत भवविष वमूँ।। त्रयकाल के तीर्थंकरों की, मैं करूँ आराधना। निज आत्मगुण सम्पत्ति की, इस विध करूँ मैं साधना।।१।। जिनगुणअतुल सम्पत्ति का, व्रत जो भविक विधिवत् करें। व्रत पूर्णकर उद्योत हेतू, नाथ गुण अर्चन करें।। मंगल महोत्सव वाद्य से,…