पंचपरमेष्ठी विधान
पंचपरमेष्ठी विधान श्री पंचपरमेष्ठी विधान श्री पंचपरमेष्ठीसमुच्चय पूजा अर्हन्त पूजा सिद्ध पूजा आचार्य पूजा श्री उपाध्याय पूजा सर्वसाधु पूजा *** *** …
पंचपरमेष्ठी विधान श्री पंचपरमेष्ठी विधान श्री पंचपरमेष्ठीसमुच्चय पूजा अर्हन्त पूजा सिद्ध पूजा आचार्य पूजा श्री उपाध्याय पूजा सर्वसाधु पूजा *** *** …
पूजा नं0-6 सर्वसाधु पूजा -स्थापना-गीताछंद- जो नित्य मुक्तीमार्ग रत्नत्रय स्वयं साधें सही। वे साधु संसाराब्धि तर पाते स्वयं ही शिव मही।। वहं पे सदा स्वात्मैक परमानंद सुख को भोगते। उनकी करें हम अर्चना, वे भक्त मन मल धोवते।।1।। णमो लोए सव्वसाहूणं सर्वसाधुपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्नाननं। णमो लोए सव्वसाहूणं सर्वसाधुपरमेष्ठिसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठःठः…
पूजा नं0-5 श्री उपाध्याय पूजा -स्थापना-गीता छंद- जो अंग ग्यारह पूर्व चौदह, धारते निज बुद्धि में। पढ़ते पढ़ाते या उन्हें, जो शास्त्र हैं तत्काल में।। वे गुरू पाठक मोक्षपथ, दर्शक उन्हीं की वंदना। आह्नानन विधि करके यहाँ पर, मैं करूँ नित अर्चना।।1।। णमोउवज्झायाणं श्री उपाध्यायपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्नाननं। णमोउवज्झायाणं श्री उपाध्यायपरमेष्ठिसमूह! अत्र तिष्ठ…
पूजा नं04 आचार्य पूजा -स्थापना-गीता छंद- जो स्वयं पंचाचार पालें, अन्य से पलवावते। छत्तीस गुण धारें सदा, निज आत्मा को ध्यावते।। ऐसे परम आचार्यवर, भवसिंधु से भवि तारते। इस हेतु उनकी अर्चना, हित हम हृदय में धारते।।1।। णमो आयरियाणं आचार्यपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्नाननं। णमो आयरियाणं आचार्यपरमेष्ठिसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। णमो…
पूजा नं0-3 सिद्ध पूजा -स्थापना-गीता छन्द- श्री सिद्ध परमेष्ठी अनन्तानन्त त्रैकालिक कहे। त्रिभुवन शिखर पर राजते, वह सासते स्थिर रहें।। वे कर्म आठों नाश कर, गुण आठ धर कृतकृत्य हैं। कर थापना मैं पूजहूँ, उनकों नमें नित भव्य हैं।।1।। णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्नाननं। णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठःठः स्थापनं।…
पूजा नं0 2 अर्हन्त पूजा -स्थापना-गीताछन्द- अरिहंत प्रभु ने घातिया को, घात निज सुख पा लिया। छ्यालीस गुण के नाथ अठरह, दोष का सब क्षय किया।। शत इन्द्र नित पूजें उन्हें, गणधर मुनी वंदन करें। हम भी प्रभो! तुम अर्चना, के हेतु अभिनंदन करें।।1।। णमोअरिहंताणं श्री अर्हत्परमेष्ठि समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्नाननं। णमोअरिहंताणं श्री…
पूजा नं0-1 श्री पंचपरमेष्ठीसमुच्चय पूजा -अडिल्ल छन्द- अर्हत्सिद्धाचार्य, उपाध्याय साधु हैं। कहे पंचपरमेष्ठी, गुणमणि साधु हैं।। भक्ति भाव से करूँ, यहाँ पर थापना। पूजूँ श्रद्धा धार, करूँ हित आपना।।1।। अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुसमूह! अत्र मम सन्निहतो भव भव वषट्…
श्री पंचपरमेष्ठी विधान -मंगल स्तोत्र- दोहा-सौ इंद्रों से वंद्य नित, पंचपरम गुरुदेव। तिनके पद अरविंद की, करूँ सदा मैं सेव।।1।। त्रिभुवन में त्रयकाल में, जन जन के हितकार। नमूं नमूं मैें भक्तिवश, होवें मम सुखकार।।2।। -कुसुमलता छंद- सुरपति नरपति नाग इंद्र मिल, तीन छत्र धारें प्रभु पर। पंच महाकल्याणक सुख के, स्वामी मंगलमय जिनवर।। अनंत…
अथ स्तवन -शंभु-छंद- ॐकार ज्ञानमय ह्रीं मध्य, राजे जो जिनवर उन्हें नमूँ। त्रसस्थावर करुणाधारी,जो एक अनेक मय उन्हें नमूूँ।। लक्ष्मीभर्ता चक्रीपति हैं, जो शांतिरूप मैं उन्हें नमूँ। जो ज्ञानगर्भ में रहते हैं, नानाभाषात्मक उन्हें नमूँ।।१।। वाञ्छाविहीन जो स्वयं, पवित्रात्मा कहलाते उन्हें नमूँ। सब अष्ट कर्म को शांत किया, औ तीर्थ चलाया उन्हें नमूँ।। कल्पनारहित सौंदर्यवान्,…
अथ शान्तिविधान पूजा प्रारंभ -स्थापना-शंभु छंद- हे शान्तिनाथ! आवो! आवो!, सब विघ्नों का परिहार करो। इस मंडल पर ठहरो ठहरो, मेरे सन्निध ही वास करो।। तुम नाम शांति भी शांतीप्रद, तुम धर्म भुवन में शान्ति करे। हे नाथ! अतः तुम आश्रय ले, कर जन्म सफल आह्वान करें।।१।। ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथ सर्वकर्मबन्धनविमुक्त सम्पूर्णोत्तम मंगलप्रद हे…