10. विजयमेरु संबंधी चार गजदंत जिनालय पूजा
(पूजा नं.10 ) विजयमेरु संबंधी चार गजदंत जिनालय पूजा —दोहा— विजयमेरु विदिशा विषै, कहें चार गजदंत। तिनमें चारों जिननिलय, कहे अनादि अनंत।।१।। तिनके श्री जिनबिंब जे, सर्व द्वंद्व हरतार। मैं विधिवत पूजन करूँ, त्रिजगवंद्य भरतार।।२।। ॐ ह्रीं श्रीविजयमेरसंबंधिचतुर्गजदंतपर्वतसिद्धकूटजिनालयस्थजिन-बिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीविजयमेरसंबंधिचतुर्गजदंतपर्वतसिद्धकूटजिनालयस्थजिन-बिम्बसमूह!अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्रीविजयमेरसंबंधिचतुर्गजदंतपर्वतसिद्धकूटजिनालयस्थजिन-बिम्बसमूह! अत्र…