नवग्रहशांतिकारक तीर्थंकर भगवान
जैन सिध्दांत में कर्म व्यवस्था को ही सर्वाधिक बलवान मानकर उससे लड़ने का मार्ग हमारे तीर्थंकरों ने बताया हैं ,फिर भी बाह्यनिमित्तों में ग्रह आदि का भी महत्त्वपूर्ण स्थान माना हैं|ग्रह नव माने हैं,सूर्य ,सोम ,मंगल ,बुद्ध,गुरु ,शुक्र ,शनि,राहु,केतू| इन नवग्रहों के अधिपति देवता पूर्व जन्म के वैर या मित्रत्रावश अथवा इस जन्म में मात्र क्रीडा आदि के निमित्त से लोगों को सुख -दुःख फुचातें रहते हैं |
नवग्रह अरिष्ट निवारक पूजा विधान एवं स्तोत्र की परम्परा काफी दिनों से हमारें समाज में चल रहि हैं ,वर्तमान में नवग्रह 2 प्रकार है |
पहला -”जिनसागरसूरी कृत”नवग्रह -जिसमें नव भगवान माने हैं |
दूसरा -”’श्रुतकेवली भद्रबाहु मुनिराज कृत”जिसमे 24 भगवानमाने हैं |
इस पुस्तक में ४ प्रकार के नवग्रहशांति मंत्र भी दिये हैं |
ॐशांति