प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर विधान (लघु)
जैनधर्म में मुख्य रूप से तीन रत्न माने हैं देव शास्त्र गुरु। इन तीनों की उपासना करने से तीन रत्नों की (सम्यग्दर्शन -ज्ञान- चरित्र) प्राप्ति होती है
पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने समय-समय पर आचार्य श्री के गुणानुवाद रूप कुछ ना कुछ लघु एवं वृहद साहित्य लिखकर समाज को प्रदान किया है इसी श्रंखला में पूज्य माताजी ने प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर विधान (लघु) लिखकर प्रदान किया है
इस पुस्तक के प्रारंभ वंदना में आचार्य देव का जन्म से लेकर सल्लेखना पर्यंत जीवनवृत दिया है और जयमाला में उनके महिमामयी जीवन का वर्णन करते हुए उनके द्वारा किए गए व्रत, तप, स्वाध्याय और प्रभावनात्मक कार्यों का उल्लेख किया है
यह विधान सभी के लिए मंगलमय हो