गृहस्थ धर्म (Grahasth Dharm)
गृहस्थ धर्म (Grahasth Dharm) जो पुरूष देवपूजा, गुरूपास्ति, स्वाध्याय, संयम, तप, और दान इन षट्कर्मों के करने में तल्लीन रहता है, जिसका कुल उत्तम है वह चूली, उखली, बुहारी आदि गृहस्थ की नित्य षट् आरम्भ क्रियाओं से होने वाले पाप से मुक्त हो जाता है वही उत्तम श्रावक कहलाता हैं। जो भव्य बिंबाफल के समान…