05.2 शुद्धात्मतत्त्व विवेचन
शुद्धात्मतत्त्व विवेचन जैसे काष्ठ में अग्नि शक्तिरूप से विद्यमान है अथवा दूध में घी शक्तिरूप से मौजूद है वैसे ही शरीर में विद्यमान आत्मा शक्तिरूप से परमतत्त्व स्वरूप परमात्मा है ऐसा ज्ञान निश्चयनय से होता है। जो भी चारों अनुयोगों के जैनग्रंथ हैं वे द्वादशांग के सारभूत ही हैं उन अनेक ग्रंथों को पढ़कर भी…