उत्तम आकिंचन्यधर्म!
उत्तम आकिंचन धर्म (गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के प्रवचनांश……..) नहिं किंचित मेरा जग में, यह ही आकिंचन्य भाव कहा। बस एक अकेला आत्मा ही, यह गुण अनन्त का पुंज अहा।। अणुमात्र वस्तु को निज समझें, वे नरक निगोद निवास करें। जो तन से भी ममता टारें, वे लोक शिखर पर वास करें।। ‘न में किञ्चन…