द्रव्य की त्रयात्मकता का सिद्धांत ४.१ जैन तत्त्वमीमांसा का आधारभूत सिद्धांत वस्तु की त्रयात्मकता है। वस्तु में उत्पाद-व्यय के साथ-साथ स्थायित्व भी बना हुआ है। कोई भी वस्तु सदा एक सी नहीं रहती और न ही पूर्णत: नष्ट होती है। परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजरती रहती है और अपने अस्तित्व को बनाये रखती है। वस्तु…
 
				
			
		
		अस्तिकाय ३.१ अस्तिकाय (Existent) अस्ति का अर्थ है-विद्यमान है और काय का अर्थ है-‘शरीर’। यद्यपि सामान्य भाषा में चमड़ी, हड्डी आदि के शरीर को काय कहते हैं, लेकिन यहाँ एक प्रदेश (एक अणु द्वारा घेरे जाने वाला स्थान) से अधिक प्रदेश वाले पदार्थों को काय कहा गया है। जैसे शरीर बहुप्रदेशी है, वैसे ही काल…
उपवास (Upvas) जैन आगम के अनुसार चारो प्रकार के आहार का त्याग करना उपवास है । प्रत्येक मास की दोनों अष्टमी और दोनों को अपनी इच्छा से आगम के अनुसार चारो प्रकार के आहार का त्याग करना तथा अष्टमी चतुर्दशी के पहले व बाद में एकाशन करना प्रोषधोपवास है । यह तप करना सिखाता है…
उपवन भूमि (Upvan Bhumi) समवसरण मे आठ भूमियाँ मानी है – १ चैत्यप्रासाद भूमि २ खातिका भूमि ३ लताभूमि ४ उपवनभूमि ५ ध्वजाभूमि ६ कल्पभूमि ७ भवनभूमि ८ श्रीमंडप भूमि चौथी उपवन भूमि में पूर्व आदि के क्रम से अशोक, सप्तच्छद, चंपा और आम के बगीचे हैं । इन चारों वनो – बगीचों में छोटी…