10.(7.2) अहिंसा धर्म
अहिंसा धर्म अमृतवर्षिणी टीका— यत्खलुकषाययोगात्प्राणानां द्रव्यभावरूपाणाम्। व्यपरोपणस्य करणं सुनिश्चिता भवति सा िंहसा१।।४३।। भावार्थ—जिस पुरुष के मन में, वचन में व काय में क्रोधादिक कषाय प्रकट होते हैं, उसके शुद्धोपयोगरूप भाव प्राणों का घात तो पहले होता है क्योंकि कषाय के प्रादुर्भाव से भावप्राण का व्यपरोपण होता है, यह प्रथम हिंसा है। पश्चात् यदि कषाय की…